मंत्रों की शक्ति रत्नों एवं अन्य उपायों से अधिक है। मंत्रों द्वारा अनेक दोष दूर किए जा सकते हैं। जो कष्ट रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है वह मन्त्रों से ठीक हो जाता है।
रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की शक्ति बढ़ती है, उसकी प्रकृति नहीं बदलती। अत: शुभफलदायी ग्रह की शक्ति बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, इसके विपरीत अशुभ प्रभाव देने वाले ग्रहों की शक्ति बढ़ने से उनके द्वारा दिए जाने वाले अशुभ प्रभाव में वृद्धि होती है। वस्तुत: कुंडली में अशुभ प्रभाव देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करना चाहिए।
ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उसके अशुभ प्रभाव को बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में शुभाशुभ प्रभाव देने वाले दोनों ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।
सामान्य परिस्थितियों में नवग्रहों के मौलिक मंत्र तथा विशेष परिस्थितियों में नवग्रहों के बीज मंत्रों का जाप दैवज्ञ की सलाह लेकर करना चाहिए। उपयोग के लिए नवग्रहों के मौलिक एवं बीज मन्त्र यहां दे रहे हैं-
नवग्रहों के मौलिक मन्त्र इस प्रकार हैं-
रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की शक्ति बढ़ती है, उसकी प्रकृति नहीं बदलती। अत: शुभफलदायी ग्रह की शक्ति बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, इसके विपरीत अशुभ प्रभाव देने वाले ग्रहों की शक्ति बढ़ने से उनके द्वारा दिए जाने वाले अशुभ प्रभाव में वृद्धि होती है। वस्तुत: कुंडली में अशुभ प्रभाव देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करना चाहिए।
ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उसके अशुभ प्रभाव को बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में शुभाशुभ प्रभाव देने वाले दोनों ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।
सामान्य परिस्थितियों में नवग्रहों के मौलिक मंत्र तथा विशेष परिस्थितियों में नवग्रहों के बीज मंत्रों का जाप दैवज्ञ की सलाह लेकर करना चाहिए। उपयोग के लिए नवग्रहों के मौलिक एवं बीज मन्त्र यहां दे रहे हैं-
नवग्रहों के मौलिक मन्त्र इस प्रकार हैं-
सूर्य - ॐ सूर्याय नम:
चन्द्र - ॐ चन्द्राय नम:
मंगल - ॐ भौमाय नम:
बुध - ॐ बुधाय नम:
गुरू - ॐ गुरवे नम:
शुक्र - ॐ शुक्राय नम:
शनि - ॐ शनये नम: या ॐ शनिचराय नम:
राहु - ॐ राहवे नम:
केतु - ॐ केतवे नम:
नवग्रहों के बीज मंत्र इस प्रकार हैं-
सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:
मन्त्र जाप से पूर्व कुण्डली दिखाकर किसी योग्य दैवज्ञ से सलाह ले लेनी चाहिए। बिना सलाह के कोई भी मन्त्र जाप या रत्न को धारण नहीं करना चाहिए। चन्द्र - ॐ चन्द्राय नम:
मंगल - ॐ भौमाय नम:
बुध - ॐ बुधाय नम:
गुरू - ॐ गुरवे नम:
शुक्र - ॐ शुक्राय नम:
शनि - ॐ शनये नम: या ॐ शनिचराय नम:
राहु - ॐ राहवे नम:
केतु - ॐ केतवे नम:
नवग्रहों के बीज मंत्र इस प्रकार हैं-
सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:
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