सफल व्यक्ित पल-पल का सदुपयोग करता है, इसीलिए वह प्रत्येक पल का आनन्द उठाता है। सफल व्यक्ति के चेहरे पर एक अलग ही आभा होती है जोकि उसके अन्त: में छिपे असंख्य अवसरों की चमक है। वे अवसर को पकड़ने से कभी नहीं चूकते हैं। जब आप काल के प्रत्येक क्षण का स्वागत् करके उसे सम्मान देते हैं तो वह आपको सफलता के लिए आगे बढ़ाता है।
काल की सड़क पर चलने वाला व्यक्ति वनवे(एकतरफा) होने के कारण वापस नहीं लौट सकता है। काल के कदम वापिस नहीं पलटते हैं। पैंतीस वर्ष का युवक सतर्क, विवेकी एवं महत्त्वकांक्षी हो सकता है, पर उसे उसका मन भी इस बात को लेकर दु:खी होगा कि उसने कई युवा वर्ष यूं ही गवां दिए।
सफलता इस तथ्य पर आधृत है-आप उपलब्ध परिस्थितियों एवं लोगों का सदुपयोग कितना कर पाते हैं। थोड़ी सी समझ से ही आप कई समस्याओं को हल कर लेते हैं, इससे समय एवं शारीरिक श्रम की बचत हो जाती है।
मित्र बनाने की सरल रीति यह है कि आप परोपकार भावना से दूजों का हित कीजिए। आप जिनका प्रोत्साहन करते हैं, जिनको सिखाते हैं और जिनकी प्रशंसा करते हैं, वे सभी आपके लिए स्थायी निधि बन जाते हैं। यह सत्य है कि उपकृत हुए बिना कोई उपकार नहीं करता है। वेदों में भी कहा है कि आप एक हाथ से बांटेंगे तो आपको हजार हाथों से मिलेगा। इसका सार यही है कि आप संसार को अधिक दान करेंगे तो आपको प्रतिदान भी अधिक मिलेगा।
सदैव युवा बने रहिए! सफलता का आयु से कोई संबंध नहीं होता है। आयु मन की अवस्था है नाकि तन की। बढ़ने के दो प्रकार हैं-बड़ा होना अथवा वृद्ध हो जाना। साठ पार के ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जो अपने से आधी आयु वालों से अधिक सक्रिय व उत्साहित हों। यदि आप स्वयं को इतना वृद्ध मानते हैं कि कुछ सीख नहीं सकते तो सच में आपको जीने का कोई अधिकार नहीं है। सही अर्थों में हमारे भीतर जितना उत्साह एवं उल्लास होता है हम उतने युवा होते हैं और जितना निरूत्साहित एवं उल्लासहीन होते हैं उतने वृद्ध होते हैं।
यदि आप सदैव सफल रहते हैं तो इसे यूं ही बनाए रखें। यदि आप सफल नहीं हैं तो सफलता की प्रतीक्षा न करके आगे बढ़कर उसे बीच राह में ही पकड़ लीजिए।
यदि आपने कुछ स्वप्न देखे हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए सक्रिय हो जाईए नाकि यूं ही बैठकर भाग्य को कोसिए। यह सत्य है कि बीता काल अतीत है, आने वाला कल भविष्य है और आज एक यथार्थ है। अतीत को कोसिए नहीं बल्कि उससे सीख लीजिए, भविष्य की प्रतीक्षा न कीजिए उसके लिए सक्रिय हो जाईए। आज को पूर्णत: सार्थक कर दीजिए और फिर आप भाग्यशाली होंगे। जीवन की सार्थकता उसे जी लेने में है!
काल की सड़क पर चलने वाला व्यक्ति वनवे(एकतरफा) होने के कारण वापस नहीं लौट सकता है। काल के कदम वापिस नहीं पलटते हैं। पैंतीस वर्ष का युवक सतर्क, विवेकी एवं महत्त्वकांक्षी हो सकता है, पर उसे उसका मन भी इस बात को लेकर दु:खी होगा कि उसने कई युवा वर्ष यूं ही गवां दिए।
सफलता इस तथ्य पर आधृत है-आप उपलब्ध परिस्थितियों एवं लोगों का सदुपयोग कितना कर पाते हैं। थोड़ी सी समझ से ही आप कई समस्याओं को हल कर लेते हैं, इससे समय एवं शारीरिक श्रम की बचत हो जाती है।
मित्र बनाने की सरल रीति यह है कि आप परोपकार भावना से दूजों का हित कीजिए। आप जिनका प्रोत्साहन करते हैं, जिनको सिखाते हैं और जिनकी प्रशंसा करते हैं, वे सभी आपके लिए स्थायी निधि बन जाते हैं। यह सत्य है कि उपकृत हुए बिना कोई उपकार नहीं करता है। वेदों में भी कहा है कि आप एक हाथ से बांटेंगे तो आपको हजार हाथों से मिलेगा। इसका सार यही है कि आप संसार को अधिक दान करेंगे तो आपको प्रतिदान भी अधिक मिलेगा।
सदैव युवा बने रहिए! सफलता का आयु से कोई संबंध नहीं होता है। आयु मन की अवस्था है नाकि तन की। बढ़ने के दो प्रकार हैं-बड़ा होना अथवा वृद्ध हो जाना। साठ पार के ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जो अपने से आधी आयु वालों से अधिक सक्रिय व उत्साहित हों। यदि आप स्वयं को इतना वृद्ध मानते हैं कि कुछ सीख नहीं सकते तो सच में आपको जीने का कोई अधिकार नहीं है। सही अर्थों में हमारे भीतर जितना उत्साह एवं उल्लास होता है हम उतने युवा होते हैं और जितना निरूत्साहित एवं उल्लासहीन होते हैं उतने वृद्ध होते हैं।
यदि आप सदैव सफल रहते हैं तो इसे यूं ही बनाए रखें। यदि आप सफल नहीं हैं तो सफलता की प्रतीक्षा न करके आगे बढ़कर उसे बीच राह में ही पकड़ लीजिए।
यदि आपने कुछ स्वप्न देखे हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए सक्रिय हो जाईए नाकि यूं ही बैठकर भाग्य को कोसिए। यह सत्य है कि बीता काल अतीत है, आने वाला कल भविष्य है और आज एक यथार्थ है। अतीत को कोसिए नहीं बल्कि उससे सीख लीजिए, भविष्य की प्रतीक्षा न कीजिए उसके लिए सक्रिय हो जाईए। आज को पूर्णत: सार्थक कर दीजिए और फिर आप भाग्यशाली होंगे। जीवन की सार्थकता उसे जी लेने में है!
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