अहंकार उन्नति में बाधक है क्योंकि इससे भेद-बुद्धि विकसित होती है और व्यक्ति व्यक्ति से ही दूर हो जाता है। अहंकार से बुद्धि विपरीत हो जाती है और व्यक्ति कुत्सित कार्य भी ठीक समझ कर करता है। अहंकार से पाप प्रवृत्तियां विकसित होने से व्यक्ति गलत कार्यों में अधिक रुचि लेने लगता है।
अहंकार का अभिन्न मित्र लोभ है। जहां अहंकार है वहां लोभ भी होगा। अहंकार के कारण व्यक्ति में लोभ इतना बढ़ जाता है कि वह समस्त वस्तुओं पर एकाधिकार चाहने लगता है। वह सभी उपलब्ध साधनों का उपभोग स्वयं ही करना चाहता है और उसमें किसी की भागीदारी उसे कतई पसन्द नहीं है। निर्बल अहंकारी जो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाता है वह स्वयं ही अपने आपको जलाता रहता है और अपनी शक्ति क्षीण करता है।
यदि आप उन्नति चाहते हैं तो आपको सर्वप्रथम अहंकार और लोभ का त्याग करना होगा। इसके त्याग से उन्नति पथ प्रशस्त होता है और मन में सन्तोष एवं शान्ति की अनुभूति होती है।
अहंकार का अभिन्न मित्र लोभ है। जहां अहंकार है वहां लोभ भी होगा। अहंकार के कारण व्यक्ति में लोभ इतना बढ़ जाता है कि वह समस्त वस्तुओं पर एकाधिकार चाहने लगता है। वह सभी उपलब्ध साधनों का उपभोग स्वयं ही करना चाहता है और उसमें किसी की भागीदारी उसे कतई पसन्द नहीं है। निर्बल अहंकारी जो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाता है वह स्वयं ही अपने आपको जलाता रहता है और अपनी शक्ति क्षीण करता है।
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