शनि का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं, पता नहीं अब क्या होगा। शनि की गिनती अशुभ ग्रहों में होती है। लेकिन इससे भयभीत नहीं होना चाहिए। शनि आपकी कुण्डली में बली है तो अपनी दशान्तर्दशा में शीर्ष पर पहुंचा देता है और समस्त सुख संग धन व वैभव प्रदान करता है। शनि अच्छी स्थिति में सच्चा मित्र होता है और रंक को राजा बना देता है जबकि अशुभ स्थिति में शत्रु होता है और राजा को रंक बना देता है।
सही अर्थों में शनि संघर्ष कराकर निखारता है बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार भट्टी में सोना तपाने पर निखरता है।
इन स्थितियों में शनि का फल इस प्रकार समझना चाहिए-
यदि शनि लग्नेश है और केन्द्र या त्रिकोण में स्थित होकर बली है तो अपनी दशान्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है।
शनि उच्च, स्वराशि या मूलत्रिकोण राशि में शुभ भावों में स्थित है तो अपनी दशान्तर्दशा में सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करके सौभाग्यशाली बनाता है। यदि इस स्थिति में शनि त्रिकोण भाव में स्थित हो तो अपनी दशान्तर्दशा में राज सम्मान और धन प्रदान करता है।
शनि उच्च नवांश या स्व नवांश का होकर 3, 6, 11वें स्थिति हो तो अपनी दशान्तर्दशा में समस्त भौतिक सुख-साधनों के साथ उच्च वाहन दिलाता है।
शनि शुभ व योगकारक ग्रह से युत हो तो वाहन, आभूषण एवं समस्त भौतिक सुख-साधनों सहित यश व सम्मान दिलाता है।
यदि तुला राशि का शनि नवम भाव में है और पंचमेश विशांश कुण्डली पंचम या नवम में स्थित हो तो जातक तपस्वी, योगी या महात्मा होता है और अध्यात्म के क्षेत्र में चहुंमुखी उन्नति करता है।
कुण्डली में शनि नीच या निर्बल है और त्रिक भावों में बैठा है तो जातक आलसी, अधिक सोने व खाने वाला निठल्ला होता है और कुसंगति वश कुकृत्य में संलग्न रहता है।
शनि बली हो तो जातक अध्यात्म के क्षेत्र में उन्नति करता है, विचार वान एवं धीर-गम्भीर होता है।
दसवें या एकादश भाव में बली शनि हो तो जातक व्यवसाय करता है और उसमें बहुत उन्नति करता है। बहुत सम्पत्ति, भौतिक सुख साधन एवं धन-वैभव पाता है।
शनि की साढ़े साती से घबराना नहीं चाहिए। इस अवधि में जातक को अधिक परिश्रम करना पड़ता है। शनि न्यायप्रिय ग्रह है और यदि आप इस अवधि में ईमानदारी के साथ सुकार्यों में संलग्न होने से जातक अधिक परेशान नहीं रहता है। शनि आपकी कुण्डली में अच्छी स्थिति में है तो साढ़े साती या ढैय्या अधिक कष्टकर नहीं होती है। शनि के पूर्ण अवधि कभी खराब नहीं जाती है। शनि का दूसरा चरण अधिक परिश्रम कराता है और निखारता है।
अन्तत: हमारा अनुभव यही है कि शनि न्यायप्रिय है और आप अपने कर्म के प्रति ईमानदार हैं और कर्त्तव्यों से जी नहीं चुराते हैं और न्यायपूर्वक उचित व्यवहार दूजों के साथ करते हैं तो शनि आपको अधिक तंग नहीं करेंगा। संघर्ष करने की क्षमता स्वत: बाधाओं को दूर करके उन्नति पथ प्रशस्त करती है। कुल मिलाकर शनि शत्रु नहीं मित्र ग्रह है।
सही अर्थों में शनि संघर्ष कराकर निखारता है बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार भट्टी में सोना तपाने पर निखरता है।
इन स्थितियों में शनि का फल इस प्रकार समझना चाहिए-
यदि शनि लग्नेश है और केन्द्र या त्रिकोण में स्थित होकर बली है तो अपनी दशान्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है।
शनि उच्च, स्वराशि या मूलत्रिकोण राशि में शुभ भावों में स्थित है तो अपनी दशान्तर्दशा में सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करके सौभाग्यशाली बनाता है। यदि इस स्थिति में शनि त्रिकोण भाव में स्थित हो तो अपनी दशान्तर्दशा में राज सम्मान और धन प्रदान करता है।
शनि उच्च नवांश या स्व नवांश का होकर 3, 6, 11वें स्थिति हो तो अपनी दशान्तर्दशा में समस्त भौतिक सुख-साधनों के साथ उच्च वाहन दिलाता है।
शनि शुभ व योगकारक ग्रह से युत हो तो वाहन, आभूषण एवं समस्त भौतिक सुख-साधनों सहित यश व सम्मान दिलाता है।
यदि तुला राशि का शनि नवम भाव में है और पंचमेश विशांश कुण्डली पंचम या नवम में स्थित हो तो जातक तपस्वी, योगी या महात्मा होता है और अध्यात्म के क्षेत्र में चहुंमुखी उन्नति करता है।
कुण्डली में शनि नीच या निर्बल है और त्रिक भावों में बैठा है तो जातक आलसी, अधिक सोने व खाने वाला निठल्ला होता है और कुसंगति वश कुकृत्य में संलग्न रहता है।
शनि बली हो तो जातक अध्यात्म के क्षेत्र में उन्नति करता है, विचार वान एवं धीर-गम्भीर होता है।
दसवें या एकादश भाव में बली शनि हो तो जातक व्यवसाय करता है और उसमें बहुत उन्नति करता है। बहुत सम्पत्ति, भौतिक सुख साधन एवं धन-वैभव पाता है।
शनि की साढ़े साती से घबराना नहीं चाहिए। इस अवधि में जातक को अधिक परिश्रम करना पड़ता है। शनि न्यायप्रिय ग्रह है और यदि आप इस अवधि में ईमानदारी के साथ सुकार्यों में संलग्न होने से जातक अधिक परेशान नहीं रहता है। शनि आपकी कुण्डली में अच्छी स्थिति में है तो साढ़े साती या ढैय्या अधिक कष्टकर नहीं होती है। शनि के पूर्ण अवधि कभी खराब नहीं जाती है। शनि का दूसरा चरण अधिक परिश्रम कराता है और निखारता है।
अन्तत: हमारा अनुभव यही है कि शनि न्यायप्रिय है और आप अपने कर्म के प्रति ईमानदार हैं और कर्त्तव्यों से जी नहीं चुराते हैं और न्यायपूर्वक उचित व्यवहार दूजों के साथ करते हैं तो शनि आपको अधिक तंग नहीं करेंगा। संघर्ष करने की क्षमता स्वत: बाधाओं को दूर करके उन्नति पथ प्रशस्त करती है। कुल मिलाकर शनि शत्रु नहीं मित्र ग्रह है।
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