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बुधवार, मार्च 30, 2011

दृष्टिकोण से ही हम सुखी व दु:खी होते है!


    प्राय: देखने में आता है जो जितना साधन-सम्‍पन्‍न है वह उतना चिंतित और व्‍याकुल है और इसके विपरीत अभाव ग्रस्‍त लोग अधिक मस्‍त व मनमौजी दिखाई पड़ते हैं।
    समान परिस्थिति के दो लोगों में से एक दु:खी और दूसर प्रसन्‍न व सुखी दिख्‍ाने से यह ज्ञात होत है कि दु:ख व सुख का कारण परिस्थितियां नहीं व्‍यक्ति का अपना द़ृष्टिकोण है।
    जो सदैव नकारात्‍मक पक्ष का चिन्‍तन करते हैं या सदैव नकारात्‍मकता को ढूंढने का प्रयास करते हैं या अभ्‍यस्‍त होते हैं वे दु:खी और जो सदैव सकारात्‍म्‍ाकता को ढूंढते हैं और इसके अभ्‍यस्‍त होते हैं वे सदैव सुखी व प्रसन्‍न ही दिखते हैं।
    सुख-दु:ख क्रमश: आते-जाते रहते हैं। इसलिए यदि आपका दृष्टिकोण सुख-दु:ख के प्रति सम हो जाए या सदैव सकारात्‍मक रहे तो सुख-दु:ख आते-जाते रहते हैं और अधिक तंग नहीं करते हैं। मूलत: जिन परिस्थितियों को सुखद् समझते हैं वे हमें सुख देती हैं और जिन परिस्थितियों को हम दु:खद् समझते हैं तो वे हमें दु:ख देती हैं।
    वस्‍तुत: दृष्टिकोण से ही हम सुखी व दु:खी होते हैं। सुविचार एवं सुसंगति से हम मनोबल में उत्तम होते हैं तो हमारा दृष्टिकोण प्रत्‍येक स्थिति के लिए सकारात्‍मक होता है जिस कारण हम सदैव स्‍वयं को सम स्थिति में पाते हैं और स्‍वयं को सुखी व प्रसन्‍न पाते हैं।

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