एक व्यक्ति के तीन बच्चे थे। वह इस बात को लेकर चिन्तित था कि पता नहीं ये कैसे निकलेंगे। बहुत सोच-विचारकर वह अपने एक बुद्धिमान एवं सफल मित्र के पास अपने तीनों पुत्रों को लेकर गया।
वहां पहुंचकर उसने अपने मित्र को अपनी चिन्ता एकान्त में बतायी।
उसके मित्र ने उसकी चिन्ता को सुना और बोला-'तुम कतई चिन्ता मत करो मैं बता दूंगा कि कौन कितने पानी में है।'
मित्र की बात सुनकर उसने कहा-'तुम मेरी चिन्ता दूर कर दो तो मैं चैन की नींद सोऊं।'
मित्र ने उसके तीनों बच्चों को पास बुलाया और प्यार से बैठाया। फिर उन्हें दो-दो केले दिए। एक ने दोनों केले के छिलके सड़क पर फेंक दिए और खेले खा लिए। दूसरे ने केले तो खा लिए पर केले के छिलके कूड़ेदान में डाल दिए। तीसरे ने एक केला स्वयं खा लिया और दूसरा केला गाय को खिला दिया। ऐसा देखकर उसने मित्र से कहा-'तुम्हारे तीनों बेटों में से पहला मूर्ख, दूसरा समझदार एवं तीसरा उदार हृदयी बनेगा!'
यह सुनकर उसने अपने मित्र से पूछा-'यह तुमने कैसे जाना?'
मित्र की बात सुनकर उसने कहा-'विवेक से।'
वहां पहुंचकर उसने अपने मित्र को अपनी चिन्ता एकान्त में बतायी।
उसके मित्र ने उसकी चिन्ता को सुना और बोला-'तुम कतई चिन्ता मत करो मैं बता दूंगा कि कौन कितने पानी में है।'
मित्र की बात सुनकर उसने कहा-'तुम मेरी चिन्ता दूर कर दो तो मैं चैन की नींद सोऊं।'
मित्र ने उसके तीनों बच्चों को पास बुलाया और प्यार से बैठाया। फिर उन्हें दो-दो केले दिए। एक ने दोनों केले के छिलके सड़क पर फेंक दिए और खेले खा लिए। दूसरे ने केले तो खा लिए पर केले के छिलके कूड़ेदान में डाल दिए। तीसरे ने एक केला स्वयं खा लिया और दूसरा केला गाय को खिला दिया। ऐसा देखकर उसने मित्र से कहा-'तुम्हारे तीनों बेटों में से पहला मूर्ख, दूसरा समझदार एवं तीसरा उदार हृदयी बनेगा!'
यह सुनकर उसने अपने मित्र से पूछा-'यह तुमने कैसे जाना?'
मित्र की बात सुनकर उसने कहा-'विवेक से।'
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