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मंगलवार, मार्च 15, 2011

34-समृद्ध कैसे बनें?


   
    प्रकृति के प्रयास सहज, अविरोधी और स्‍वतन्‍त्र हैं!
    प्रक़ति के प्रयास सहज, विरोध रहित और स्‍वतन्‍त्र होते हैं। इस तथ्‍य को समझने के लिए आप प्रकृति के क्रिया-कलाप अर्थात् कार्य-विस्‍तार का निरीक्षण करेंगे तो आपको अनुभूत होगा कि उसमें(प्रकृति में) जो कुछ हो रहा है या वह जो कुछ कर रही है उसमें सहजता, अविरोध और स्‍वतन्‍त्रता निहित है।
    पौधे उगने का प्रयास नहीं करते अपितु सहज में उग जाते हैं। सूर्योदय-सूर्यास्‍त सूर्य की प्रकृति है जो स्‍वयं द़ष्टिगोचर हो रही है। तारों का टिमटिमाना, ग्रहों का अपनी कक्षा में परिभ्रमण, पृथ्‍वी का अपनी धुरी पर घूमना, पक्षियों का उड्ना, चिडि़यों का चहचहाना और पुष्‍पों का खिलना आदि सब कुछ सहज में हो रहा है, इसमें कोई विरोध और बन्‍धन नहीं होता है। सहजता, विरोध के बिना और स्‍वतन्‍त्रता सहित करते रहने में अल्‍प प्रयास में सर्वाधिक करना(पूर्ण कर्म करना) होता है जिसका फल भी पूर्ण मिलता है।
    अल्‍प प्रयास द्वारा सर्वाधिक प्राप्‍त करना प्रकृति की योग्‍यता है। आपने कभी यह अनुभूत अवश्‍य करा होगा कि आप द्वारा प्रत्‍यक्ष में किए गए प्रयास के अतिरिक्‍त अप्रत्‍यक्ष में स्‍वत: कुछ होता रहता है जो शनै:-शनै: फल रूप में प्रत्‍यक्ष हो जाता है और तब आप कह उठते हैं-'यह कब हो गया, इसका तो सोचा ही नहीं था।' यह सब आप अल्‍प प्रयास में अनायास जादूई रूप में पा जाते हैं।
    अल्‍प प्रयास में अधिक प्राप्ति का मन्‍त्र आप कब सिद्ध कर सकेंगे जब आप आत्‍मनिरीक्षण द्वारा स्‍वयं को जानकर अन्‍त: में छिपी शक्ति के रहस्‍य का परिचय प्राप्‍त करके प्रकृति से समन्‍वय स्‍थापित कर लेंगे तब अल्‍प प्रयास में अधिक प्राप्ति के मन्‍त्र की सिद्धि सहज में कर लेंगे।
    सहज होकर प्रेम व समर्पण भाव से कर्म में संलग्‍न होंगे तो आपकी शक्ति में चहुंमुखी विस्‍तार होगा और समृद्ध होना सहज हो जाएगा।
    आप साधक हैं और आपका शरीर साधन। शरीर को आप शक्ति संचय के लिए प्रयोग कर सकते हैं और आवश्‍यकता के अनरूप उसमें से उपभोग कर सकते हैं। जब आप शक्ति(जो ऊर्जा है) की उत्‍पत्ति, संचय और उसके व्‍यय को भली-भांति जान लेंगे तो उसका सदुपयोग कर पाना आपके लिए सरल होगा।
    घमंड को प्रश्रय न दें क्‍योंकि ऐसा करेंगे तो आप दूजों पर नियन्‍त्रण एवं आधिपत्‍य जमाएंगे, ऐसे में अपनी शक्ति का दुरुपयोग करेंगे। उनको समझकर स्थिति को अच्‍छा बनाने का प्रयास करना है। आपका या हमारा सदैव यही प्रयास रहता है कि आप या हम दूसरों को अपने विचारों से सहमत कराने में सफल हो जाएं। यह आवश्‍यक नहीं है कि दूजे आपसे सहमत हों। जब आप यह समझ जाएंगे तो आप अपनी शक्ति को ह्रास होने से बचा सकेंगे और आपको यह भी लगेगा कि अब तक आप व्‍यर्थ में अपनी शक्ति को क्षति पहुंचाते रहे हैं। आपको प्रत्‍येक स्थिति में स्‍वयं को अकड़ा लेते हैं और अड़ने की जिद्द आपको अवरोध, संघर्ष एवं परेशानी में डाल देती है। आपको ताड़ सद़श अड़ना नहीं चाहिए, अपितु बांस सदृश लचीला बनकर अपनी रक्षा करनी चाहिए।
    यदि आप पक्षपात, संघर्ष या विरोध से बचेंगे तो वर्तमान आपका होगा और उसे पूर्णता सहित जीएंगे। भूत तो ऐतिहासकि तथ्‍य है, भविष्‍य आपके लिए रहस्‍य है एवं वर्तमान आपका अपना है जोकि आप जी सकते हैं, इसे सहज होकर जी लें, ऐसा कर लेंगे तो उत्‍साही बनकर स्‍वतन्‍त्रता सहित उस क्षण को सम्‍पूर्णता सहित जी लेंगे। यदि आप इस प्रकार कर्म सिद्धान्‍त को समझकर प्रत्‍येक क्षण को वर्तमान में जी लेंगे तो कोई भी आपको समृद्ध होने से नहीं रोक सकेगा। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्‍य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्‍योतिष निकेतन सन्‍देश  पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
 

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