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सोमवार, मार्च 14, 2011

33-समृद्ध कैसे बनें?


   
    प्रकृति कर्मशील होती है!
    कर्म में संलग्‍न रहने वाले को कर्मशील कहते हैं। कर्म के गर्भ में क्रिया और फल दोनों छिपे हुए हैं। स्‍वामी रामतीर्थ ने सत्‍य कहा है-'निष्‍काम कर्म ईश्‍वर को ऋणी बना देता है और ईश्‍वर उसको ब्याज सहित वापस करने को बाध्‍य होता है।'
    यह जान लें कि कर्म वही श्रेष्‍ठ होता है जिससे अनेक लोगों को सर्वाधिक आनन्‍द की प्राप्ति होती है। कर्म की परिभाषा इस कहावत में निहित है-'जो बोयेंगे वो काटेंगे।' अत: सुकर्म शुभफलदायी और कुकर्म अशुभफलदायी होते हैं। आप सुकर्म करने के लिए संलग्‍न होते हैं तो शुभफल तो मिलेगा ही। आपने अनुभूत किया होगा कि आप कुछ न कुछ  करने के लिए चयन की प्रक्रिया में संलग्‍न रहते हैं। आप कुछ कर्मों का चयन प्रत्‍यक्ष में जानते हुए करते हैं और कुछ कर्मों को अप्रत्‍यक्ष में चयनित कर लेते हैं। कर्मों का सही चयन तभी होता है जब हम सब कर्म-चयन की प्रक्रिया में जागरूक रहें अर्थात् सजगता सहित यह करें।
    आप जो कुछ भोग रहे हैं या जो कुछ आपके सम्‍मुख घटित हो रहा है, यह सब आपके कर्म-चयन का परिणाम है। यह सब आपने कभी न कभी जाने-अनजाने चुना है, परन्‍तु अब आप विस्‍मरण कर रहे हैं कि आपने यह सब चयन किया था। हमारे कर्म या प्रतिक्रियाएं दूसरों और परिस्थितियों द्वारा प्रभावित होते हैं। यदि आप चाहते तो अपने लिए इनमें से ऊर्वर कर्म चयन कर सकते थे। सोच-समझकर लिए गए कर्म सम्‍बन्‍धी निर्णय के परिणाम अत्‍यन्‍त सुखद् मिलते हैं।
    कर्म सम्‍बन्‍धी चयन करते समय आप स्‍वयं से प्रश्‍न कर सकते हैं-
    जो कर्म करने की सोच रहा हूं, उसका क्‍या परिणाम होगा?
    मैंने जो भी कर्म सम्‍बन्‍धी निर्णय लिया है उसका मेरे आसपास के लोगों पर क्‍या प्रभाव पड़ेगा?
    यदि इन प्रश्‍नों का प्रत्‍युत्तर सकारात्‍मक हो तो आपका कर्म-चयन उचित है और यदि इन प्रश्‍नों का प्रत्‍युत्तर नकारात्‍मक हो तो आपका कर्म-चयन का निर्णय अनुचित है।
    कर्म ऐसे ही चयन करने चाहिएं जिनका परिणाम एवं प्रभाव दूजों के लिए सुखकर हो। समुचित कर्म-चयन की प्रक्रिया और उसको करने की रीति भी समुचित होगी तो परिणाम से आपका और आपके निकटस्‍थों का व्‍यवहार उचित होगा।
    कर्म का सिद्धान्‍त क्‍या है और इसकी प्रक्रिया क्‍या है? यदि यह आप जान लेंगे तो समृद्ध एवं प्रभुत्त्व की प्राप्ति आपके लिए सहज होगी। प्रत्‍येक कर्म के साथ समृति जुड़ी होती है। अन्‍त: में निहित चेतनता में ही कर्म, स्‍मृति और इच्‍छा का स्रोत छिपा है। इस स्रोत को खोज लेने पर ही आप स्‍वत: चेतन को जान जाएंगे और अपने लिए समुचित कर्म-चयन में संलग्‍न हो जाएंगे। कर्म-चयन की प्रक्रिया खोज परक होगी तो आपके कर्म स्‍वयं एवं दूजों के लिए सुखकर होंगे। कर्म के परिणाम को भी दृष्टिगत रखने से कर्म-चयन सम्‍बन्‍धी समुचित निर्णय लेने की सामर्थ्‍य बढ़ेगी। कर्म के गर्भ में छिपी स्‍मृति में वह शक्ति होती है जो इच्‍छा को उत्‍पन्‍न करती है और यह इच्‍छा पुन: कर्म के लिए प्रेरक बनती है। जब सम्‍यक् कर्म-चयन हो जाएगा तो कर्मरत् आप स्‍वत: हो जाएंगे अर्थात् अन्‍तत: आप कर्मशील बन जाते हैं। कर्मशीलता समृद्धि तक पहुंचने का मार्ग निष्‍कंटक करती है। आपको तो उत्तम कर्म-चयन करके कर्मयोगी के कर्त्तव्‍यों को निभाना है, समृद्धि तो स्‍वत: आएगी। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्‍य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्‍योतिष निकेतन सन्‍देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)

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