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शुक्रवार, मार्च 11, 2011

30-समृद्ध कैसे बनें?


    प्रकृति प्रतिभावान् है, उसका प्रतिभा-कोश असीम है!
    प्रकृति सदृश प्रतिभावान् बनना चाहिए। प्रत्‍येक व्‍यक्ति को निज प्रतिभा-कोश में प्रतिभा रूपी धन को नित्‍य संग्रह करना चाहिए। सम्‍पर्क से मित्र बनते हैं। मित्रता प्रतिभा सम्‍पन्‍न व्‍यक्तियों से करनी चाहिए। प्रतिभा सम्‍पन्‍न व्‍यक्तियों की संगति प्रतिभा-कोश में वृद्धि करती है। सुसंगति प्रतिभा के विकास में चार चांद लगाती है। आपको सुसंगति हेतु प्रतिभा सम्‍पन्‍न लोगों से सम्‍पर्क करना चाहिए। ऐसा करने पर आपके प्रतिभा-कोश में वृद्धि होगी और आप समृद्ध हो सकेंगे, इसमें कोई सन्‍देह नहीं है। प्रतिभा प्रकृति के निरीक्षण से प्राप्‍त ज्ञान से भी बढ़ती है। स्‍वाध्‍याय से भी ज्ञान-वृद्धि होती है जो प्रतिभा के विकास में सहायक है। कुछ भी पढ़ें, उसे समझकर व्‍यवहार में अवश्‍य लाएं क्‍योंकि बिना व्‍यवहार में लाए ज्ञान व्‍यवहारिक नहीं हो पाता। व्‍यवहारिक ज्ञान ही अनुभव कराता है और प्रतिभा के विकास में सहायक होता है। प्रतिभा समृद्धि की पोषक है। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्‍य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्‍योतिष निकेतन  सन्‍देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)

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