प्रकृति सम्पर्क की भाषा जानती है।
वह सम्पर्क की भाषा जानती है इसीलिए वह सर्वाधिक समाजिक है। प्रकृति की समाजिकता उसके सम्पर्क में निहित है। प्रकृति के कण-कण में सामाजिकता विद्यमान है। प्रकृति अन्त:रूप से परस्पर सम्पर्क बनाए हुए है। उसका प्रत्येक अणु एक दूसरे सम्बद्ध है और यह सम्पर्क वश ही है। सम्पर्क से सम्भावनाओं की वृद्धि होती है, यह वृद्धि विकास को प्रश्रय देती है। सम्पर्क से ज्ञान, सहयोग एवं विकास का सूत्रपात होता है। आधुनिक युग में सम्पर्क के अनेक साधन उपलब्ध हैं। आज के आधुनिक युग में चुटकियों में तीव्र गति से दूसरों से सम्पर्क कर सकते हैं, विचारों(ज्ञान) का आदान-प्रदान कर सकते हैं एवं समृद्धि-कोष में अर्थ के विभिन्न रूपों को संग्रहित कर सकते हैं। वस्तुत: सम्पर्क की भाषा समझकर स्वयं को सर्वाधिक समाजिक बनाना चाहिए। जब तक आप ऐसा करने में समर्थ नहीं हो जाएंगे तब तक समृद्धि के द्वार नहीं खुल पाएंगे। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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