प्रकृति की जागरूकता कालातीत होती है।
उन्नति हेतु हमारी जागरूकता समयबद्ध होती है। समयबद्ध जागरूकता भूत और भविष्य की चिन्ता से भयभीत करती है। हम स्वयं को विस्मरण करते जाते हैं और समयबद्ध जागरूक बन जाते हैं। समयबद्ध जागरूक बनने से हम अपना बाह्य विकासकरते हैं अर्थात् समाजिक मुखौटा ओढ़ लेते हैं। भविष्य को लेकर भयभीत नहीं होना चाहिए और अतीत की चिन्ता(भूतकाल-चिन्तन) भी नहीं करना चाहिए। जीवन तो वर्तमान में केन्द्रित है, उसे उसी तरह भोगते रहना चाहिए जिस तरह व्यतीत होता जाता है। जीवन में घटनाएं घटती रहती हैं और उसी के अनुरूप उचित प्रतिक्रियाएं मिलती रहती हैं। उचित-अनुचित के मध्य जो अन्तराल है वही परमानन्द होता है। विचारों के मध्य का अन्तराल भी इसी रूप में जाना जाता है। यह अन्तराल अन्त: में कुछ कहता रहता है, इसे ध्यान से श्रवण करें तो एक क्षण ऐसा आता है जब सब कुछ साफ-साफ श्रवण होने लगता है, इसे अन्तर्ज्ञान कहते हैं। समयबद्ध जागरूकता ऊपरी लेखा-जोखा रखती है जोकि सामान्य जीवन जीने के लिए आवश्यक है। कालातीत जागरूकता अन्त: रूप से जागरूक होती है और अन्तर्ज्ञान रूप में अनुभूत होती है जो परमानन्द की प्राप्ति कराती है। जीवन की सम्पूर्णता कालातीत होने में है। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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