प्रकृति का हृदय विशाल है।
वह सदैव अपनी प्रचुरता(आय) से बिना शर्त दान देती रहती है। आपको भी प्रकृति के इस गुण को स्वीकार करके उसको व्यवहार में लाना चाहिए। आपको अपनी आय का एक भाग बिना शर्त दान में देना चाहिए। दान देते रहने से एक शून्यता(रिक्तता) बन जाती है। यह शून्यता अप्रत्यक्ष रूप में आपके दान से अधिक धन संचित करती रहती है जोकि आपके लिए अदृश्य है। कहने का तात्पर्य यह है कि आपकी हृदय की विशालता आपको अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध करती जाती है। जो कभी भी प्रत्यक्ष होकर धनलाभ करा देती है। ऐसे में आप कहते हैं कि अचानक धनलाभ हो गया इसकी तो कोई उम्मीद नहीं थी। यह ध्यान रखें कि विशाल हृदय रहित समृद्ध होना निरर्थक है। अप्रत्यक्ष कोष की वृद्धि दान देने से होती है। इस कोष में वृद्धि करते रहना चाहिए।(क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)वह सदैव अपनी प्रचुरता(आय) से बिना शर्त दान देती रहती है। आपको भी प्रकृति के इस गुण को स्वीकार करके उसको व्यवहार में लाना चाहिए। आपको अपनी आय का एक भाग बिना शर्त दान में देना चाहिए। दान देते रहने से एक शून्यता(रिक्तता) बन जाती है। यह शून्यता अप्रत्यक्ष रूप में आपके दान से अधिक धन संचित करती रहती है जोकि आपके लिए अदृश्य है। कहने का तात्पर्य यह है कि आपकी हृदय की विशालता आपको अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध करती जाती है। जो कभी भी प्रत्यक्ष होकर धनलाभ करा देती है। ऐसे में आप कहते हैं कि अचानक धनलाभ हो गया इसकी तो कोई उम्मीद नहीं थी। यह ध्यान रखें कि विशाल हृदय रहित समृद्ध होना निरर्थक है। अप्रत्यक्ष कोष की वृद्धि दान देने से होती है। इस कोष में वृद्धि करते रहना चाहिए।(क्रमश:)
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