प्रकृति में सेवा की भावना अटूट है।
प्रकृति सदैव सेवारत् रहती है और आपकी निरन्तर सेवा कर रही है। प्रकृति अपनी प्रचुरता(समृद्धि) को निरन्तर बांट रही है। प्रकृति से सेवा का पाठ पढ़ना चाहिए। धन एक ऊर्जा है और यह ऊर्जा प्रकृति से मिल सकती है। आप प्रकृति की सेवा करें अर्थात् अपनी ऊर्जा का निवेश प्रकृति की सेवा में करें, आपको स्वत: अनुभूत होने लगेगा कि प्रकृति ने आपके समक्ष अपना रहस्य उजागर कर दिया है और अपनी प्रचुरता आपको समृद्ध करने के लिए देनी शुरू कर दी है। यह सब आपको तभी मिल पाएगा जब आपमें भी प्रकृति सदृश सेवा की भावना अटूट होगी। सेवा किसी की भी हो प्रतिफल में कुछ न कुछ मिलता अवश्य है अब चाहे वह फल किसी भी रूप में मिले। आपको तो फल रहित सेवा में संलग्न होना है। सेवा भी समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है विश्वास नहीं हो रहा है तो सेवा भावना को व्यवहार में लाकर देखें, आप दूजों को भी प्रशस्त करेंगे।(क्रमश:)
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का सुपथ पा सकते हैं!)प्रकृति सदैव सेवारत् रहती है और आपकी निरन्तर सेवा कर रही है। प्रकृति अपनी प्रचुरता(समृद्धि) को निरन्तर बांट रही है। प्रकृति से सेवा का पाठ पढ़ना चाहिए। धन एक ऊर्जा है और यह ऊर्जा प्रकृति से मिल सकती है। आप प्रकृति की सेवा करें अर्थात् अपनी ऊर्जा का निवेश प्रकृति की सेवा में करें, आपको स्वत: अनुभूत होने लगेगा कि प्रकृति ने आपके समक्ष अपना रहस्य उजागर कर दिया है और अपनी प्रचुरता आपको समृद्ध करने के लिए देनी शुरू कर दी है। यह सब आपको तभी मिल पाएगा जब आपमें भी प्रकृति सदृश सेवा की भावना अटूट होगी। सेवा किसी की भी हो प्रतिफल में कुछ न कुछ मिलता अवश्य है अब चाहे वह फल किसी भी रूप में मिले। आपको तो फल रहित सेवा में संलग्न होना है। सेवा भी समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है विश्वास नहीं हो रहा है तो सेवा भावना को व्यवहार में लाकर देखें, आप दूजों को भी प्रशस्त करेंगे।(क्रमश:)
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