प्रकृति में दानशीलता होती है।
प्रकृति में देने की सामर्थ्य होती है। उसकी दानशीलता देने में है, लेने में नहीं। अत: उसके पास जो भी है उसे एकत्र नहीं करती है, उसे दूजों के उपभोग के लिए देती रहती है।
धन(अर्थ) में दानशीलता का स्वभाव होता है, यह स्वभाव उसकी गति में परिलक्षित होता है। किसी से उसके स्वभाव के विपरीत कार्य लेंगे तो वह मन से कार्य नहीं करेगा और फलस्वरूप कार्य में पूर्णता नहीं होगी जिससे उन्नति व समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त नहीं होगा। धन की गत्यात्मकता को समाप्त न होने दें। धन का आदान-प्रदान होता रहेगा तो उसमें वृद्धि होती रहेगी। धन को एक जगह(संग्रह) रोक देंगे तो उसकी गत्यात्मकता समाप्त हो जाएगी, फलस्वरूप उसकी(धन) वृद्धि रुक जाएगी। धन का स्वभाव उसकी गति में निहित है। अत: उसके स्वभाव के विपरीत उसे संग्रह न करें। उस सदैव आदान-प्रदान में संलग्न रखें, उसकी वृद्धि अवश्य होगी। यहां यह ध्यान रखना होगा कि धनका निवेश(गति रूपी आदान-प्रदान) सन्तुलित ढंग से अवसरानुकूल होना चाहिए। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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