प्रकृति अपने सम्मुख सदैव प्रश्न रखती है।
प्रकृति अपने सम्मुख सदैव प्रश्न रखती है या यूं कह लीजिए उसके समक्ष सदैव प्रश्न विद्यमान रहता है। ऐसा वह इसलिए करती है क्योंकि उसे सत्य की खोज निरन्तर रहती है। सत्य की खोज ही उसे सृजन की प्रेरणा सदैव देती रहती है।
आपको भी स्वयं से प्रश्न पूछने चाहिएं। सभी पर प्रश्नचिह्न लगाकर उनका उत्तर खोजेंगे तो आपमें उत्पन्न जिज्ञासा का शमन होगा और ज्ञान में वृद्धि भी होगी। प्रश्न में जिज्ञासा और अभीप्सा है। ये दोनों मनुष्य को उन्नति पथ पर ले जाते हैं। प्रश्नों के उत्तर खोजने चाहिएं। शंका का समाधान तलाशना चाहिए। ये सब आपको उन्नति व समृद्धि के लिए नई सूत्रता प्रदान करेंगे। प्रश्न को संशय कदापि न बनने दें। संशय नकारात्मकता को प्रश्रय देता है। प्रश्न की यात्रा उत्तर या समाधान पर समाप्त करेंगे तो समृद्धि आप से स्वत: मित्रता करने का तत्पर रहेगी।(क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
प्रकृति अपने सम्मुख सदैव प्रश्न रखती है या यूं कह लीजिए उसके समक्ष सदैव प्रश्न विद्यमान रहता है। ऐसा वह इसलिए करती है क्योंकि उसे सत्य की खोज निरन्तर रहती है। सत्य की खोज ही उसे सृजन की प्रेरणा सदैव देती रहती है।
आपको भी स्वयं से प्रश्न पूछने चाहिएं। सभी पर प्रश्नचिह्न लगाकर उनका उत्तर खोजेंगे तो आपमें उत्पन्न जिज्ञासा का शमन होगा और ज्ञान में वृद्धि भी होगी। प्रश्न में जिज्ञासा और अभीप्सा है। ये दोनों मनुष्य को उन्नति पथ पर ले जाते हैं। प्रश्नों के उत्तर खोजने चाहिएं। शंका का समाधान तलाशना चाहिए। ये सब आपको उन्नति व समृद्धि के लिए नई सूत्रता प्रदान करेंगे। प्रश्न को संशय कदापि न बनने दें। संशय नकारात्मकता को प्रश्रय देता है। प्रश्न की यात्रा उत्तर या समाधान पर समाप्त करेंगे तो समृद्धि आप से स्वत: मित्रता करने का तत्पर रहेगी।(क्रमश:)
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