प्रकृति आलोचना नहीं करती है! आप कभी प्रकृति का निरीक्षण करके देखें कि वह शान्त भाव से अपना विकास निज सृजन द्वारा निरन्तर करती रहती है। उसे किसी की आलोचना करना स्वीकार ही नहीं है।
यह सत्य है कि यह कतई आवश्यक नहीं कि आप किसी को उचित या अनुचित, अच्छा या बुरा ठहराएं। आप मन से जब यह पाठ सीख लेते हैं कि आलोचना कदापि नहीं करेंगे और कदापि किसी को अच्छा या बुरा अथवा उचित या अनुचित नहीं ठहराएंगे। ऐसा पाठ सीखते ही आपकी चेतना सर्वाधिक मौन होने लगती है। अन्त: की हलचल अर्थात् आन्तरिक वार्तालाप शान्त होने से अन्तराल अर्थात् शून्यता की प्राप्ति सहज हो जाती है। आलोचना से आप अशान्त और अस्थिर होते हैं। अत: अब यह(आलोचना) कभी नहीं करनी है। आपको चाहिए आप दूजों की आलोचना न करके उसमें निहित गुणों को ग्रहण करें। आलोचना अपनी भी कदापि न करें, ऐसा करेंगे तो आपमें भी निराशा अपना घरौंदा बनाने लगेगी। आपको मात्र आत्मनिरीक्षण द्वारा अपनी सम्भावनाओं और योग्यता का परिचय प्राइज़ करना है। आलोचना करने से बचना स्वयं को समृद्ध बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है जिसे अवश्य करना चाहिए। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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