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बुधवार, फ़रवरी 09, 2011

समृद्धि की कुंजी




एक बार मैं अपने मित्र के साथ एक सत्‍संग में गया। वह अपने गुरु को व्‍यवहारिक ज्ञान की खान बताता था। मैंने मार्ग में उससे पूछा-'तू किसलिए उनके पास जा रहा है।'
मेरी बात सुनकर बोला-'आजकल बिना पैसे के कोई कार्य बनता ही नहीं है। आज मैं उनसे पूछुंगा कि मुझे बहुत धन चाहिए और मैं बहुत धनी बनना चाहता हूं। कैसे बनूं यह उनसे जानना है, इसका रहस्‍य उनसे पूछना है।'
गुरु के पास पहुंचकर उसने उचित अवसर जानकर यही प्रश्‍न पूछ लिया तो गुरु ने प्रत्‍युत्तर में कहा-'दो देवियों को सभी जानते हैं और वे हर एक के मन में वास करती हैं। सभी उससे प्रेम करते हैं। लेकिन रहस्‍य की बात किसी को नहीं मालूम है।'
मेरा मित्र तुरन्‍त बोल पड़ा-'वो क्‍या गुरु जी।'
वे मुस्‍कराकर बोले-'इतनी भी क्‍या जल्‍दी है। बता तो रहा हूं। एक देवी है ज्ञान की जिसे लोग सरस्‍वती के नाम से जानते हैं। तुमसे उसी से प्रेम करना चाहिए और उसका ही अनुसरण करना चाहिए। दूसरी देवी है लक्ष्‍मी जो धन की देवी है। रहस्‍य यही है कि तुम जितना अधिक सरस्‍वती पर ध्‍यान दोगे तो देवी लक्ष्‍मी सरस्‍वती से उतनी ईर्ष्‍या करेगी और तुम पर अधिक ध्‍यान देगी जिससे तुम उसे चाहने लगो। लेकिन तुम्‍हें यह ध्‍यान रखना है कि तुम ज्ञान की देवी को जितना चाहोगे उतना लक्ष्‍मी तुम्‍हारे साथ रहेगी और कभी तुम्‍हारा साथ नहीं छोड़ेगी। धनी बनने की कुंजी ज्ञान है, देवी सरस्‍वती है। ज्ञान से बुद्धि परिपक्‍व होती है। धन सदैव परिश्रम से नहीं बुद्धि से कमाया जाता है और बुद्धि सरस्‍वती यानि ज्ञान की क़पा से बढ़ती है। ज्ञान वृद्धि धन की वृद्धि करने का सरल मार्ग है।'
गुरु का आशीर्वाद लेकर हम वापिस लौट आए। मुझे नहीं पता मेरा मित्र इस रहस्‍य को समझा या नहीं पर मैं समझ गया था कि धन के पीछे भागने से धन नहीं आता है। ज्ञान के पीछे भागने से लक्ष्‍मी पीछे-पीछे चली आती है। यह रहस्‍य ही समृद्धि की कुंजी है।  

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