प्रकृति में सत्य ज्ञान का स्रोत छिपा है!
प्रकृति में सत्य ज्ञान का स्रोत छिपा है जिसमें से सदैव ज्ञान का लावा प्रस्फुटित हो रहा है। आपको उसके इस ज्ञान-स्रोत से सत्य ज्ञान को बटोरने का निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए। ज्ञान रहित होने से तो जीवन में विराम आ जाता है। ज्ञान को प्रश्रय देकरउसे व्यवहार में लाने से सब कुछ आप तक स्वत: सिमटने लगेगा। आपको मात्र प्रकृति में निहित ज्ञान को बटोरना है और उसे व्यवहार में लाना है, फिर देखिए आपके समक्ष अवसर कैसे भागे चले आते हैं। ऐसे में आपको कौन समृद्ध होने से रोक सकेगा। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
प्रकृति में सत्य ज्ञान का स्रोत छिपा है जिसमें से सदैव ज्ञान का लावा प्रस्फुटित हो रहा है। आपको उसके इस ज्ञान-स्रोत से सत्य ज्ञान को बटोरने का निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए। ज्ञान रहित होने से तो जीवन में विराम आ जाता है। ज्ञान को प्रश्रय देकरउसे व्यवहार में लाने से सब कुछ आप तक स्वत: सिमटने लगेगा। आपको मात्र प्रकृति में निहित ज्ञान को बटोरना है और उसे व्यवहार में लाना है, फिर देखिए आपके समक्ष अवसर कैसे भागे चले आते हैं। ऐसे में आपको कौन समृद्ध होने से रोक सकेगा। (क्रमश:)
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सत्यमेव जयते - मुंडकोपनिषद
जवाब देंहटाएंन हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते - श्रीमद्भगवद्गीता
गोपाल