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शुक्रवार, फ़रवरी 11, 2011

2-समृद्ध कैसे बनें?




प्रकृति में नियमानुवर्तिता होती है!
नियमानुरूप प्रकृति सृजन और विध्‍वंस करती रहती है। उसका यह गुण हमें भी नियम पर चलने की सीख देता है। 
सृजन रूप में हमें सदगुणों  को प्रश्रय देते रहना चाहिए और अवगुणों(निज दोषों) से स्‍वयं को मुक्‍त करते रहना चाहिए। 
प्रकृति से नियमानुवर्तिता का पाठ सीखकर उसके अनुरूप अपने जीवन को व्‍यवस्थित करना चाहिए जिससे आप उन्‍नति पथ पर बढ़ सकें। नियमानु‍वर्तिता के सिद्धान्‍त को अपनाने से जीवन व्‍यवस्थित हो जाता है। नियमानुवर्तिता से प्राप्‍त व्‍यवस्थित जीवन समृद्ध होने का मार्ग प्रशस्‍त करता है। समृद्ध होना है तो जीवन को नियमानुवर्तिता के सिद्धान्‍त को अपनाकर व्‍यवस्थित करना ही होगा। यदि आपने अपना जीवन व्‍यवस्थित किया तो आपको समृद्ध होने से कौन रोकेगा। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्‍य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्‍योतिष निकेतन सन्‍देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)

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