प्रकृति चिन्तक से श्रेष्ठ है?
प्रकृति चिन्तक की तरह विचार ही नहीं करती है, अपितु विचार को सृजनता के गुण द्वारा(जो कर्मठता से प्राइज़ होता है)सजीव करती है अर्थात् उसको अनुभूत करती है। मूलत: प्रकृति सृजनशील(कर्मशील) है।
इस जगत् में चिन्तकों की कमी नहीं है। एक चिन्तक को खोजेंगे तो हजार मिलेंगे। चिन्तक का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि उसमें क्रियात्मकता का अभाव होता है। चिन्तक भी उपदेशक की तरह होते हैं, उपदेश तो देते हैं पर उनका स्वयं कभी पालन नहीं करते हैं। 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' के भावार्थ को चिन्तक भी अपनाते हैं।
आप चिन्तक बनिए, परन्तु उनसे बेहतर चिन्तक बनिए। बेहतर चिन्तक वो होता है जिसमें कर्मठता, कर्मशीलता एवं क्रियात्मकता होती है। यदि यह सब आप नहीं अपना सकते तो आपकी समस्त सम्भावनाएं, स्वप्न और कल्पनाएं व्यर्थ हो जाएंगी। इनको सजीव करने के लिए चिन्तन के साथ-साथ कर्मठता, कर्मशीलता एवं क्रियात्मकता सहित इनका पीछा करना पड़ेगा। यदि आपने ऐसा किया तो आपको समृद्ध होने से कोई नहीं रोक सकेगा। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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