प्रकृति स्वयं में ध्यान मग्न है!
प्रकृति से ध्यान की सीख लेनी चाहिए। प्रकृति से मौनता का पाठ आपने सीख लिया है तो ध्यान लगाना आपके लिए सहज है। ध्यान वायुयान है जो साधक को आनन्द और अक्षय शान्ति के साम्राज्य में उड़ा ले जाता है-ये सूत्र स्वामी शिवानन्द जी का है जिसे हम यहां आपको स्मरण करा रहे हैं। मोक्ष प्राप्ति ध्यान मार्ग से गुजरने के उपरान्त ही मिलती है। समृद्धि का सरलार्थ समस्त इच्छाओं को सहजता में पूर्ण कर लेना है। समृद्धि का द्वार ध्यान से खुल सकता है। धन का ध्यान जो रखते हैं वे कभी समृद्ध नहीं हो सकते हैं। आपको पता है, धन का ध्यान सर्वाधिक कौन करता है। धन का ध्यान सबसे ज्यादा निर्धन करता है। निर्धन धन के अतिरिक्त कुछ सोचता नहीं है। धन का ध्यान या उसकी चिन्ता करने से धन कभी नहीं बढ़ता है, अपितु जो है वो भी चला जाता है। जो समृद्ध है, उसे धन का ध्यान नहीं रहता है। यदि वह इसी चिन्ता में लगा रहेगा कि धन कैसेट बढ़े और उसकी रक्षा कैसे हो तो जो है वो भी धीरे-धीरे चला जाएगा। आप ध्यान मग्न हैं तो आप केन्द्रित हैं और यदि आपका ध्यान अस्थिर(बिखरा हुआ) है तो आप भी अस्थिर(बिखरे हुए) हैं। केन्द्रित व्यक्ति कुछ कर सकता है, जबकि अस्थिर व्यक्ति तो कुछ भी करने योग्य नहीं है। स्वयं को केन्द्रीभूत करने से प्रभु के अस्तित्व का भान होता है और परिपूर्णता का स्वानुभव भी होता है। धीरे-धीरे स्वयं को केन्द्रित करने सामर्थ्य बढ़ती जाती है। स्वतन्त्र होकर जीने में वास्तविक समृद्धि निहित है। इसका सत्य दर्शन तभी हो पाया है जब आप ध्यान और कर्म को एकान्तर कर पाते हैं। शुद्ध ज्ञान एवं चेतना के मौलिक सत्य के अन्त: में जितना गहरे पैठेंगे उतना आपका कर्म परिपूर्ण होगा जिसके फलस्वरूप असीम विपुलता अन्तहीन हो जाएगी। ध्यान की यह विशेष गुणधर्मिता है कि जो अनन्त में निहित सम्भावना को भौतिक सत्य में परिवर्तित कर देती है। भौतिक सृजन तो मात्र स्वानुभव है। ध्यान को केन्द्रित करने की आवश्यकता है। जो है उस पर ध्यान दो और प्रतिक्षण की परिपूर्णता के दर्शन करो। ईश्वर प्रत्येक कण्ा में विद्यमान है। आपको मात्र ध्यान से संचेतन मन को केन्द्रित(वश में) करते रहना है। यदि ऐसा किया तो समृद्ध होने का मार्ग सहज हो जाएगा। (क्रमश:)
प्रकृति से ध्यान की सीख लेनी चाहिए। प्रकृति से मौनता का पाठ आपने सीख लिया है तो ध्यान लगाना आपके लिए सहज है। ध्यान वायुयान है जो साधक को आनन्द और अक्षय शान्ति के साम्राज्य में उड़ा ले जाता है-ये सूत्र स्वामी शिवानन्द जी का है जिसे हम यहां आपको स्मरण करा रहे हैं। मोक्ष प्राप्ति ध्यान मार्ग से गुजरने के उपरान्त ही मिलती है। समृद्धि का सरलार्थ समस्त इच्छाओं को सहजता में पूर्ण कर लेना है। समृद्धि का द्वार ध्यान से खुल सकता है। धन का ध्यान जो रखते हैं वे कभी समृद्ध नहीं हो सकते हैं। आपको पता है, धन का ध्यान सर्वाधिक कौन करता है। धन का ध्यान सबसे ज्यादा निर्धन करता है। निर्धन धन के अतिरिक्त कुछ सोचता नहीं है। धन का ध्यान या उसकी चिन्ता करने से धन कभी नहीं बढ़ता है, अपितु जो है वो भी चला जाता है। जो समृद्ध है, उसे धन का ध्यान नहीं रहता है। यदि वह इसी चिन्ता में लगा रहेगा कि धन कैसेट बढ़े और उसकी रक्षा कैसे हो तो जो है वो भी धीरे-धीरे चला जाएगा। आप ध्यान मग्न हैं तो आप केन्द्रित हैं और यदि आपका ध्यान अस्थिर(बिखरा हुआ) है तो आप भी अस्थिर(बिखरे हुए) हैं। केन्द्रित व्यक्ति कुछ कर सकता है, जबकि अस्थिर व्यक्ति तो कुछ भी करने योग्य नहीं है। स्वयं को केन्द्रीभूत करने से प्रभु के अस्तित्व का भान होता है और परिपूर्णता का स्वानुभव भी होता है। धीरे-धीरे स्वयं को केन्द्रित करने सामर्थ्य बढ़ती जाती है। स्वतन्त्र होकर जीने में वास्तविक समृद्धि निहित है। इसका सत्य दर्शन तभी हो पाया है जब आप ध्यान और कर्म को एकान्तर कर पाते हैं। शुद्ध ज्ञान एवं चेतना के मौलिक सत्य के अन्त: में जितना गहरे पैठेंगे उतना आपका कर्म परिपूर्ण होगा जिसके फलस्वरूप असीम विपुलता अन्तहीन हो जाएगी। ध्यान की यह विशेष गुणधर्मिता है कि जो अनन्त में निहित सम्भावना को भौतिक सत्य में परिवर्तित कर देती है। भौतिक सृजन तो मात्र स्वानुभव है। ध्यान को केन्द्रित करने की आवश्यकता है। जो है उस पर ध्यान दो और प्रतिक्षण की परिपूर्णता के दर्शन करो। ईश्वर प्रत्येक कण्ा में विद्यमान है। आपको मात्र ध्यान से संचेतन मन को केन्द्रित(वश में) करते रहना है। यदि ऐसा किया तो समृद्ध होने का मार्ग सहज हो जाएगा। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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