प्रकृति की मौनता को सुनें!
आप इसे पढ़कर कहेंगे प्रकृति मौन है तो उसकी मौनता को कैसेट सुनें। आप यह भी सोच सकते हैं कि प्रकृति मौन कहां है, उसमें तो हलचल, शोर और चंचलता विभिन्न रूपों में दृष्टिगत होती है। मूल रूप में प्रकृति मौन है। एक रहस्य की बात जान लें मौन में असीम शक्ति विद्यमान है। प्रकृति में जो हलचल या शोर की अनुभूति हो रही है, वह प्रकृति की मौनता का परिणाम है अर्थात् उसकी सृजनात्मकता है जो निरीक्षण के उपरान्त अनुभूत होती है। सृजनात्मक-शक्ति विशुद्ध सामर्थ्य से उत्पन्न होती है। विशुद्ध सामर्थ्य आत्मनिरीक्षण से प्राइज़ आत्मज्ञान से मिलती है। आत्मज्ञान के लिए ध्यान लगाना होगा। आप कहेंगे कि ध्यान लगाना तो जटिल है, ये असम्भव है, हमारे पास इतना समय कहां? व्यस्त जीवन से समय निकाल पाना सम्भव नहीं। स्पष्ट बात यह है कि आप हमें शब्द जाल में बांध रहे हैं और जो सम्भव नहीं है उसे करने को कह रहे हैं। अब तो हमें यह लगने लगा है कि हम समृद्ध हो ही नहीं सकते हैं।
आपको पूर्व में बता चुके हैं कि सकारात्मक सोच रखें। आपने इतना सब कुछ पढ़ लिया फिर भी नकारात्मक बातें कह रहे हैं। ध्यान तो बाद की बात है, आपको तो मौनता का पाठ पढ़ना है। प्रकृति यही सिखलाती है।
मौनता का अभ्यास अर्थात् मौन रहना जब सीख जाएंगे तो ध्यान लगाना तो सरल हो जाएगा। प्रारम्भ में प्रतिदिन दो घंटे मौन रहने का अल्प प्रयास करें। दो घंटे तो अवश्य मौन रहें। मौन रहने का समय धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। मौन का अभ्यास एक दिन, दो दिन या कई दिन तक भी करके देखना चाहिए। मौन रहें। मौन रहने से तात्पर्य यह है कि बोलने की क्रिया से दूर रहें। आप न बोलें, न सुनें, न पढ़ें और कुछ न देखें। एकान्त में बैठकर मौन रहें। मौन रहने का अभ्यास करेंगे तो आपको लगेगा कि आपके अन्दर अधिक शोर उत्पन्न हो गया है, एक ऐसा वार्तालाप शुरू हो गया है जो अस्थिरता का मार्ग प्रशस्त करता है। ऐसे में आप अधिक बोलना चाहेंगे और आपके अन्त: में द्वन्द्वात्मक संघर्ष बढेंगा। लेकिन ऐसे में मौन का अभ्यास न छोड़ना चाहिए और न भयभीत होता चाहिए। मौन के सतत् अभ्यास से शैन:-शनै: मानसिक द्वन्द्व शान्त हो जाएगा और मौन का उदय प्रखरता के साथ होगा। ऐसा तभी होता है जब मन यह स्वीकार कर लेता है कि आप वार्तालाप नहीं करना चाहते। आप शान्ति को अनुभूत करने लगते हैं, आपके अन्त: में हलचल नहीं होती और किसी प्रकार का वार्तालाप या द्वन्द्व नहीं होता। आपका मौन धीरे-धीरे प्रखर होता जाएगा और अन्तत: विशुद्ध(सत्य) रूप में परिलक्षित होने लगेगा। विशुद्ध मौन की अवस्था में आपमें सामंजस्य स्थापित करने की अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव होगा। ऐसे में कार्य का विशद् क्षेत्र आपके समक्ष होगा जो आपको सृजनात्मक द्वार पर खड़ा कर देगा। जहां से आपमें छिपी रचनाशीलता विविध रूपों में दृष्टिगोचर होने लगेगी। ऐसे में आपको लगेगा आपकी सामर्थ्य में दिन-दूनी रात-चौगनी वृद्धि होती जा रही है। मौनता अन्त: में स्थिरता को प्रश्रय देती है। जब अन्त: में शान्ति विद्यमान होती है तो ऐसे में जो इच्छा प्रस्फुटित होगी उसे आप सहजता एवं सुगमता से पूर्ण कर सकेंगेफ लेकिन ऐसा तब होगा जब आपने प्राइज़ विशुद्ध(मौलिक) सामर्थ्य को स्थिरता सहित धारण कर लिया है। शान्त रहकर दृढ़ बनें और यह अनुभूत करें कि आप ईश्वर सदृश हैं। ऐसा करने से आप परम शक्ति से अपना सम्बन्ध जोड़ सकेंगे। तब इच्छा-पूर्ति के लिए न सोचना पड़ेगा। वह तो जादू की छड़ी सदृश स्वत: पूर्ण होने लगेंगी। ऐसे में आपको समृद्ध होने से कौन रोकेगा। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
आप इसे पढ़कर कहेंगे प्रकृति मौन है तो उसकी मौनता को कैसेट सुनें। आप यह भी सोच सकते हैं कि प्रकृति मौन कहां है, उसमें तो हलचल, शोर और चंचलता विभिन्न रूपों में दृष्टिगत होती है। मूल रूप में प्रकृति मौन है। एक रहस्य की बात जान लें मौन में असीम शक्ति विद्यमान है। प्रकृति में जो हलचल या शोर की अनुभूति हो रही है, वह प्रकृति की मौनता का परिणाम है अर्थात् उसकी सृजनात्मकता है जो निरीक्षण के उपरान्त अनुभूत होती है। सृजनात्मक-शक्ति विशुद्ध सामर्थ्य से उत्पन्न होती है। विशुद्ध सामर्थ्य आत्मनिरीक्षण से प्राइज़ आत्मज्ञान से मिलती है। आत्मज्ञान के लिए ध्यान लगाना होगा। आप कहेंगे कि ध्यान लगाना तो जटिल है, ये असम्भव है, हमारे पास इतना समय कहां? व्यस्त जीवन से समय निकाल पाना सम्भव नहीं। स्पष्ट बात यह है कि आप हमें शब्द जाल में बांध रहे हैं और जो सम्भव नहीं है उसे करने को कह रहे हैं। अब तो हमें यह लगने लगा है कि हम समृद्ध हो ही नहीं सकते हैं।
आपको पूर्व में बता चुके हैं कि सकारात्मक सोच रखें। आपने इतना सब कुछ पढ़ लिया फिर भी नकारात्मक बातें कह रहे हैं। ध्यान तो बाद की बात है, आपको तो मौनता का पाठ पढ़ना है। प्रकृति यही सिखलाती है।
मौनता का अभ्यास अर्थात् मौन रहना जब सीख जाएंगे तो ध्यान लगाना तो सरल हो जाएगा। प्रारम्भ में प्रतिदिन दो घंटे मौन रहने का अल्प प्रयास करें। दो घंटे तो अवश्य मौन रहें। मौन रहने का समय धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। मौन का अभ्यास एक दिन, दो दिन या कई दिन तक भी करके देखना चाहिए। मौन रहें। मौन रहने से तात्पर्य यह है कि बोलने की क्रिया से दूर रहें। आप न बोलें, न सुनें, न पढ़ें और कुछ न देखें। एकान्त में बैठकर मौन रहें। मौन रहने का अभ्यास करेंगे तो आपको लगेगा कि आपके अन्दर अधिक शोर उत्पन्न हो गया है, एक ऐसा वार्तालाप शुरू हो गया है जो अस्थिरता का मार्ग प्रशस्त करता है। ऐसे में आप अधिक बोलना चाहेंगे और आपके अन्त: में द्वन्द्वात्मक संघर्ष बढेंगा। लेकिन ऐसे में मौन का अभ्यास न छोड़ना चाहिए और न भयभीत होता चाहिए। मौन के सतत् अभ्यास से शैन:-शनै: मानसिक द्वन्द्व शान्त हो जाएगा और मौन का उदय प्रखरता के साथ होगा। ऐसा तभी होता है जब मन यह स्वीकार कर लेता है कि आप वार्तालाप नहीं करना चाहते। आप शान्ति को अनुभूत करने लगते हैं, आपके अन्त: में हलचल नहीं होती और किसी प्रकार का वार्तालाप या द्वन्द्व नहीं होता। आपका मौन धीरे-धीरे प्रखर होता जाएगा और अन्तत: विशुद्ध(सत्य) रूप में परिलक्षित होने लगेगा। विशुद्ध मौन की अवस्था में आपमें सामंजस्य स्थापित करने की अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव होगा। ऐसे में कार्य का विशद् क्षेत्र आपके समक्ष होगा जो आपको सृजनात्मक द्वार पर खड़ा कर देगा। जहां से आपमें छिपी रचनाशीलता विविध रूपों में दृष्टिगोचर होने लगेगी। ऐसे में आपको लगेगा आपकी सामर्थ्य में दिन-दूनी रात-चौगनी वृद्धि होती जा रही है। मौनता अन्त: में स्थिरता को प्रश्रय देती है। जब अन्त: में शान्ति विद्यमान होती है तो ऐसे में जो इच्छा प्रस्फुटित होगी उसे आप सहजता एवं सुगमता से पूर्ण कर सकेंगेफ लेकिन ऐसा तब होगा जब आपने प्राइज़ विशुद्ध(मौलिक) सामर्थ्य को स्थिरता सहित धारण कर लिया है। शान्त रहकर दृढ़ बनें और यह अनुभूत करें कि आप ईश्वर सदृश हैं। ऐसा करने से आप परम शक्ति से अपना सम्बन्ध जोड़ सकेंगे। तब इच्छा-पूर्ति के लिए न सोचना पड़ेगा। वह तो जादू की छड़ी सदृश स्वत: पूर्ण होने लगेंगी। ऐसे में आपको समृद्ध होने से कौन रोकेगा। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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