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गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

15-समृद्ध कैसे बनें?


   
    प्रकृति सामर्थ्‍यवान् है!
    प्रकृति के पास असीमित भंडार है। उसमें से जो व्‍यक्‍त है वह दृश्‍य है और जो अभी व्‍यक्‍त होना है वह अदृश्‍य है। प्रकृति से सामर्थ्‍य का सूत्र सीखना चाहिए। सामर्थ्‍यवान् कैसेट बनें यह जानना चाहिए। हम सब स्‍वयं को जड़ शरीर से जानते हैं क्‍योंकि यही हमें सरलता से दिखाई पड़ता है। जड्ता(शरीर) में जो चेतनता(आत्‍मा) व्‍याप्‍त है उसे नहीं देख पाते हैं, इसीलिए जड़ को (जो चेतन से चेतनता पाता है) चेतन समझ बैठते हैं। यही हमारा असत्‍य ज्ञान है जो हमें सामर्थ्‍यवान् बनने से रोकता है। चेतना जोकि मूल रूप है, यही सामर्थ्‍य है। यही समस्‍त सम्‍भावनाओं(अज्ञात) और सतत् कर्म का असीमित क्षेत्र है। मौलिकता तो शुद्ध ज्ञान, सच्‍चा ज्ञान, परम ज्ञान, विज्ञान(विशिष्‍ट ज्ञान) से भी परे विशुद्ध ज्ञान(जो सीधा चेतना से वरदान स्‍वरूप मिलता है)को पाने में है।
    आपको जब मौलिकता प्राइज़ हो जाती है अर्थात् विशुद्ध ज्ञान के फलस्‍वरूप स्‍वयं को मूलरूप में जान जाते हैं तो आप अनन्‍त सम्‍भावना के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। यही आपको असीमित, असीम, अनन्‍त सामर्थ्‍य के दर्शन कराती है जो सदैव विद्यमान है। आपको तो मात्र उससे परिचय बढ़ाना है।
    आपको जैसे-जैसे ज्ञान मिलता जाता है वैसे-वैसे विविधता(अनेकता) के दर्शन होते जाते हैं। आपको कोई सुमार्ग या सुमार्ग बतलाने वाला(निर्देशक) नहीं मिलता है। यह भटकाव तभी दूर हो सकता है जब आप विविधता)अनेकता) को एकता में बांध दें। अनेकता में एकता के दर्शन करने मात्र से भटकाव दूर हो जाता है और परम लक्ष्‍य स्‍वत: आपके सम्‍मुख होता है।
    निरीक्षण से कुछ ज्ञान मिलता है। निरीक्षण भी दो रूपों में होता है-वस्‍तुपरक और आत्‍मनिरीक्षण।
    वस्‍तुपरक निरीक्षण में पुनरावृत्ति हाती है अर्थात् जो दिखाई पड़ता है उसका पुन: निरीक्षण करते हैं। हमारा निरीक्षण प्रतिक्रिया(तुरन्‍त फल) चाहता है, इसीलिए फल की चिन्‍ता हमें सताती है, यही हमारा भय है जो अन्‍तत: असफलता की ओर ढकेलता है। इसके विपरीत आत्‍म-निरीक्षण की विशेषता यह है कि हम ज्ञात के पीछे जो अज्ञात है उसका निरीक्षण करते हैं अर्थात् मूलभूत ज्ञान तक पहुंचने की सामर्थ्‍य पाते हैं। मूलभूत ज्ञान पाकर सामर्थ्‍यवान् बनने का मार्ग प्रशस्‍त होता है। इस मार्ग पर कर्मयोगी बनकर चलने से यानि सतत् प्रयास करने के फलस्‍वरूप समृद्धि का द्वार खुल जाता है।  (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्‍य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्‍योतिष निकेतन सन्‍देश  पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)

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