प्रकृति आत्मनिर्भरता को प्रश्रय देती है!
प्रकृति से आत्मनिर्भरता का पाठ सीखना चाहिए और हमें भी आत्मनिर्भर होने का प्रयास करना चाहिए। दूजों पर आश्रित होने से निज में छिपी अलौकिक शक्तियां जाग्रत नहीं हो पातीं क्योंकि आश्रित तो अकर्मण्यता का दास होता है। वह तो दूजों पर बोझ सदृश है, उसकी जीवन रूपी गाड़ी को खींचता तो कोई ओर है, वह तो आलसी, निठल्ला और कामचोर है। आत्मनिर्भर समृद्ध हो सकता है परन्तु आश्रित कदापि नहीं। वस्तुत: आत्मनिर्भरता को प्रश्रय देना चाहिए, चाहे कर्म रूपी प्रयास कितना ही करना पड़े। (क्रमश:)
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