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सोमवार, सितंबर 06, 2010

पहचान


एक बार राजकुमार बुद्ध अपने सेवक के साथ टहलने निकले। 
उन्‍हें माग मार्ग में एक दुर्बल व्‍यक्ति दिखाई दिया तो उन्‍होंने सेवक से पूछा-'यह दुर्बल क्‍यों है।' सेवक ने उत्‍तर दिया-'राजकुमार, यह व्‍यक्ति बीमार है।'
राजकुमार बुद्ध बोले-'तो क्‍या व्‍यक्ति बीमार भी होता है।'
 'हां राजकुमार, जब व्‍यक्ति अपनी शक्ति खो देता है तो बीमार हो जाता है।'
'मैं आज से ही बीमार हो गया।'-राजकुमार बुद्ध बोले।
थोड़ आगे चलने पर उन्‍होंने एक मुर्दे को देखा जिसके साथ कुछ लोग रोते चले जा रहे थे। यह देखकर वे सेवक से बोले-'ये लोग रो क्‍यों रहे हैं।'
सेवक राजकुमार की बात सुनकर बोला-'इनका कोई सम्‍बन्‍धी मर गया है।'
यह सुनकर राजकुमार बोले-' तो व्‍यक्ति मरता भी है।'
'हां, राजकुमार, एक न एक दिन व्‍यक्ति मर ही जाता है।' सेवक बोला।
सेवक की बात सुनकर बुद्ध बोले-'मैं आज से ही मर गया।'
उन्‍होंने उसी क्षण कहा-'मैं रोग, शोक और मृत्‍यु का कारण ढूंढना चाहता हूं।' ऐसा क्‍या हो गया जो उन्‍होंने ऐसा कहा। वास्‍तव में सेवक की बातें उनके हृदय को छू गयीं। उसी क्षण से उन्‍होंने अपनी पहचान खोजने का प्रयत्‍न किया। इस प्रयत्‍न में उनके भीतर सोई हुई शक्ति जाग उठी। सेवक के उत्‍तर सुनने से पूर्व बुद्ध केवल मनुष्‍य थे। परन्‍तु सेवक के शब्‍दों ने उनमें नई शक्ति का संचार किया और भीतर सोई शक्ति जाग गयी। तब उन्‍होंने ऐसा जीवन जिया जिसने लोगों का भला किया और वे महात्‍मा बुद्ध बन गए। जब मनुष्‍य अपने भीतर सोई शक्तियों को जगा लेता है, लेकिन ये जागती तब हैं जब वह स्‍वयं को पहचान लेता है। तब उसमें हीनता एवं छोटेपन की भावना नहीं रहती है। वह स्‍वयं की पहचान बनाने के लिए संघर्षरत् हो उठता है और इस संघर्ष में वे वह कर बैठता है जो उसे महान् बना देते हैं। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं वे सब तभी बने हैं जब उन्‍होंने स्‍वयं को पहचान लिया।

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