1- शिक्षक ज्ञान रूपी कमरे का द्वार खोलता है, लेकिन कमरे में प्रवेश तो आपको ही करना होगा।
2- मैं क्या कर सकता हूं, इस दृष्टि से आप अपनी ओर देखते हैं, लेकिन ध्यान रखें दूसरे इस दृष्टि से आपकी ओर देखते हैं कि आपने क्या किया है।
3- किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि आप क्या कर सकते हैं, पहले कीजिए फिर बताइए। वैसे भी बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि किया हुआ अपने आप दिखाई देता है।
4-काम प्रारम्भ कीजिए क्योंकि प्रारम्भ करते ही बुद्धि दौड़ने लगती है, निरन्तर करते रहिए, काम शतप्रतिशत पूर्ण हो जाएगा।
5-यह आप जानते हैं कि परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन फिर भी प्रतीक्षा में रहते हैं कि न करनी पड़े और कार्य पूरा हो जाए।
6-थके बिना सतत् कार्य करें क्योंकि थकना एक बहाना है आराम का। सतत् कार्य सदैव सफल होते हैं।
7-प्रारम्भ किया कार्य कभी नहीं छोड़ना, छोड़ना ही नहीं है बिना पूर्ण किए।
8-यदि आपमें लगन नहीं है तो आप कितने भी बड़े विद्वान क्यों न हों कुछ नहीं कर सकते हैं।
9-कुछ भी करने से पूर्व भय सताता है तो तुरन्त कार्य प्रारम्भ कर दें। कार्य प्रारम्भ होते ही धीरे-धीरे भय स्वत: भाग जाएगा।
खतरा जानकर कुछ नहीं कर रहे हैं तो उससे भी बड़ा खतरा आपके सामने होगा। कुछ न करने में वास्तविक खतरा है, कुछ करने में तो खतरा भी अपने आप दूर हो जाता है। इसलिए भयभीत रहने की अपेक्षा एक बार खतरा अवश्य मोल लें।
10-असफलता से घबराएं नहीं, क्योंकि असफलता की कोख से सफलता का सूत्र निकलता है। यह जान लें कि जितनी अधिक असफलताएं होंगी उतनी बड़ी सफलता भी मिलेगी।
उपयोगी और प्रेरक सूत्र। काम आएँगे।
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