किसी कवि ने ठीक कहा है कि
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
।
प्रकृति को सन्तुलित करने के लिए ईश्वर ने दिन और रात की व्यवस्था की है। इसी प्रकार उसने मानव जीवन सन्तुलित करने के लिए एवं उसे परीक्षा की कसौटी पर कसने के लिए ही सुख के साथ दु:ख को जोड़ा है। यह सत्य है कि यदि दु:ख न हो तो सुख का भास ही न हो। सुख की अनुभूति दु:ख को जाने बिना हो ही नहीं सकती है। जब आपको यह पता है तो आपको दु:ख आने पर विचलित नहीं होना चाहिए, उसे हंस-हंसकर झेलना चाहिए, रोकर या परेशान होकर नहीं। दु:ख का हंसकर स्वागत् करने लगेंगे तो वह आपको कष्टकारी लगेगा ही नहीं।
अपने समस्त आवश्यक कार्य को उत्साह संग करें। अपने पास उत्साह-हीनता कदापि न आने दें। कैसी भी परिस्थिति हो साहस का दामन न छोड़ें। सदैव समयानुकूल सक्रिय रहें और मन में निराशा, असफलता एवं हार के भाव न आने दें क्योंकि मन को जीत लेंगे तो चहुं ओर जीत ही दिखाई देगी। इतना कर लेंगे तो आप सफलता का सोपान चढ़ने में सहजता महसूस करेंगे।
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