गोचर विचार करते समय जन्मराशि या जन्मलग्न से द्वादश भावों में सूर्यादि नौ ग्रहों के परिभ्रमण को दृष्टिग्रत रखकर ही फलादेश किया जाता है। यदि सूक्ष्म गोचर फलादेश कहना है तो जन्म नक्षत्र से गोचर वश ग्रहों का 27 नक्षत्रों में भ्रमण को भी ध्यान में रखना होगा।
जन्म नक्षत्र पर कोई ग्रह आने से वह नक्षत्र प्रथम कहलाता है, उससे अगले पर जाने से दूसरा, दूसरे से अगले नक्षत्र पर जाने से तीसरा आदि कहा जाता है। इसी प्रकार 27 नक्षत्रों पर क्रमशः जानना चाहिए। अब यहाँ पर 27 नक्षत्रों पर सूर्यादि नौ ग्रहों के परिभ्रमण से जो प्रभाव पड़ता है उसे उपयोगार्थ दे रहे हैं।
सूर्य ग्रह का नक्षत्र-फल
सूर्य ग्रह जन्म नक्षत्र से 1 पर नाश, 2रे से 5वें तक धनलाभ, 6ठे से 9वें तक कार्यसिद्धि, 10वें से 13वें तक धनलाभ, 14वें से 19वें तक भोगोपभोग के साधनों में वृद्धि, 20वें से 23वें तक शारीरिक कष्ट, 24वें से 25वें तक लाभकारी एवं 26वें व 27वें नक्षत्र में मृत्यु भय कराता है।
चन्द्र ग्रह का नक्षत्र-फल
जन्म नक्षत्र से चन्द्र 1ले व 2रे हो तो भयभीत करता है, 3रे व 6ठे हो तो प्रसन्नचित व सकुशल रखता है, 7वें व 8वें पर हो तो विरोधियों पर विजय दिलाता है, 9वें व 10वें पर हो तो आर्थिक सम्पन्नता, 11वें से 15वें तक मनोविनोद के कार्यों में संलग्न कराता है, 16वें से 18वें तक वाद-विवाद, झगड़ा या मारपीट कराता है एवं 19वें से 27वें तक धनलाभ कारक है।
मंगल ग्रह का नक्षत्र फल
जन्म नक्षत्र से मंगल ग्रह 1ले व 2रे नक्षत्र पर होने से दुर्घटना कराता है, 3रे से 8वें होने पर वाद-विवाद एवं कलह कराता है, 9वें से 11वें होने पर कार्य में सफलता दिलाता है, 12वें से 15वें होने पर धनहानि कराता है, 16वें से 17वें होने पर आर्थिक लाभ होता है, 18वें से 21वें तक होने पर मन में भय व्याप्त रहता है, 22वें से 25वें तक होने पर सुख में वृद्धि होती है एवं 26वें व 27वें नक्षत्र पर होने से यात्रा योग बनता है।
बुध, गुरु एवं शुक्र ग्रह का नक्षत्र-फल
जन्म नक्षत्र से बुध, गुरु एवं शुक्र ग्रह 1ले से 3रे नक्षत्र पर होने से चिन्ताकारक, 4थे से 6ठे होने पर आर्थिक लाभ, 7वें से 12वें होने पर अनिष्टकारी, 13वें से 17वें होने पर आर्थिक सम्पन्नता, 18वें से 19वें होने पर कष्टकारी एवं 20वें से 27वें होने पर यश और लाभ में वृद्धि होती है।
शनि, राहु एवं केतु ग्रह का नक्षत्र-फल
जन्म नक्षत्र से शनि, राहु एवं केतु 1ले होने पर कष्टकारी, 2रे से 5वें होने पर सुखकारी, 6ठे से 8वें होने पर यात्रा कारक, 9वें से 11वें होने पर सर्व प्रकार से हानि एवं कष्ट, 12वें से 15वें होने पर सर्व प्रकार से उन्नति, 16वें से 20वें होने पर भोगोपभोग के साधन बढ़ते हैं, 21वें से 25वें होने पर सर्व कार्यसिद्धि होती है और 26वें व 27वें होने पर राज्य भय या शत्रु भय रहता है।
प्रत्येक ग्रह को उसके जन्म नक्षत्र स्थित नक्षत्र से गिन कर गोचर अध्ययन किया जाय न कि जन्म चंद्र नक्षत्र से । परिणाम सटीक आयेंगे ।
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