शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है। कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं।
उड़ीसा में जगन्नाथपुरी शंख-क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि इसका भौगोलिक आकार शंख सदृश है। शंख की उत्पत्ति संबंधी पुराणों में एक कथा वर्णित है। सुदामा नामक एक कृष्ण भक्त पार्षद राधा के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर दक्ष के वंश में जन्मा। अन्त में विष्णु ने इस दानव का वध किया। शंखचूड़ के वध के पश्चात् सागर में बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा राधा के शाप से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन में श्रीकृष्ण के पास चली गई।
विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है।
शंख के उदर के आधार पर इसके दो भेद हैं-दक्षिणावृत्त और वामवृत्तका।
शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर हो तो दक्षिणावृत्त और जिसका उदर बायीं ओर खुलता हो तो वह वामावृत्त शंख है।
दक्षिणावृत्त शंख घर में होने पर लक्ष्मी का घर में वास रहता है।
जो भगवान् कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर मुझे अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।
शंख में जल भरकर ऊं नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान् को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।
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