डेंगू बुखार को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। इस बुखार में अस्थियों, उनकी सन्धियों में तीव्र वेदना एवं बुखार होता है। यह स्टेगोमिया फेसियाटा नामक मच्छर के काटने से मनुष्य के शरीर में कीटाणुओं का संक्रमण होन से दण्डक ज्वर होता है।
इन कीटाणुओं का प्रभाव रस, रक्त, लसीका, यकृत, प्लीहा तथा लसिका ग्रन्थियों पर पड़ता है।
रोग के लक्षण
इस रोग के आक्रमण पर निम्न लक्षण मिलते हैं-
1. ज्वर कुछ घंटों में ही 104 फारनहॉईट तक चढ़ जाता है।
2. इसमें ज्वर चढ़ता है और उतर जाता है, परन्तु पुनः चढ़ जाता है।
3. प्रायः सात दिन में ज्वर ठीक हो जाता है।
4. हाथ, पैर, सिर, कमर तथा आंखों में तीव्र पीड़ा होती है।
5. शरीर पर छोटे व गुलाबी रंग के दानें हो जाते हैं तथा अपने आप शान्त हो जाते हैं।
6. नाड़ी मन्द चलती है।
7. दुर्बलता, निद्रा नाश, क्षुधा नाश आदि लक्षण भी पाये जाते हैं।
8. यह रोग आसाम, बंगाल, मद्रास तथा मुंबई में अधिक पाया जाता है।
रोग की चिकित्सा
इस रोग के लक्षण जब मिल जाएं तो इस प्रकार औषधि सेवन करना चाहिए-
1. विषम ज्वरान्तक लौह, त्रिभुवन कीर्ति रस, शुष्ठी, श्रृंग, शतावरी, आरोग्यवर्धिनी के सेवन से लाभ होता है।
2. चन्द्र प्रभावटी, आम पाचनवटी तथा गुग्गुल का प्रयोग भी कर सकते हैं।
3. रोगी को पूर्ण आराम तथा लघु व पौष्टिक आहार देना चाहिए।
4. हिंगुलेश्वर रस 120मिग्रा. और शुष्ठी चूर्ण 360ग्राम मिलाकर दिन में चार बार गर्म पानी से देना चाहिए।
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