पिरामिड की चर्चा अधिकाशंतः सुनने में आती है। आजकल पायरा वास्तु का प्रचलन भी हो गया है। पिरामिड क्या है और इसका क्या उपयोग है, यह विचार मन रह-रहकर उठता है। यह जानने के लिए ही पिरामिड की चर्चा करते हैं और यह बताने का प्रयास करेंगे कि आप जान सकें कि इसका क्या लाभ है।
भारतीय ऋषि-मुनियों ने यह सिद्ध किया कि एक सरल या मामूली आकार या ज्यामिति रचना अपने भिन्न केन्द्रों से ऊर्जा तथा प्रकाश का प्रसार करती है। अब चाहे वह एक त्रिभुज, वर्ग, पंचभुज या षष्ठभुज हो। इसी आधार पर यन्त्र बनाए गए। कहते हैं कि सर्वाधिक ऊर्जा एक त्रिभुज तथा उसके केन्द्रों से उपजती है। इसी कारण त्रिभुज को शक्ति का स्रोत माना गया।
पिरामिड का शाब्दिक अर्थ है पिरा (Pyra) एवं मिड (Mid) में संधि विच्छेद कर इसका अर्थ दिया है त्रिकोणाकार ऐसी वस्तु, जिसके मध्य में ऊर्जा के स्रोत का निर्माण होता है। मिस्रवासी पिरामिडों को ईसा पूर्व 2600 वर्ष पुराना मानते हैं। मिश्र वासियों ने इस शक्ति को पिरामिड के रूप में प्रयोग में लाकर लाभ उठाया और शवों को ममी के रूप में इसमें कई सौ वर्षों तक सुरक्षित रखा।
पिरामिड के भीतर ऊर्जा क्षेत्र
पिरामिड 'आकाश तत्व' के अंतर्गत आकाश ऊर्जा (Space Energy)में आता है और इसीलिए इसका घर में आकाश तत्व को बढ़ाने के लिए इसको उपयोग में लिया जाता है।
पिरामिड कभी ठोस नहीं होता। पिरामिड तो पृथ्वी पर भार हैं। उनका कोई महत्व नहीं। ऐसे तो बड़े-बड़े तिकोने पर्वत पृथ्वी पर खडे हैं। उनमें कोई चमत्कार नहीं। पिरामिड का असली संबंध तो अंदर के रिक्त स्थान (Space) आकाश तत्व एवं उसमें प्रवाहित होने वाली ऊर्जा से है। फिर पिरामिड ज्यामितीय सिद्धांतों एवं वास्तु सिद्धांतों पर खरे उतरने चाहिएं। तभी उनमें चमत्कारी शक्ति आएगी।
पिरामिड के अंदर गहन शक्ति का अनुभव होता है। पिरामिड की ऊर्जा, भूगर्भ के चारों कोनों की चार भुजा से उर्वगामी होती है तथा पिरामिड का शक्ति बिंदु ऊपरी नोक की ओर बढ़ता है। उधर सूर्य की ऊर्जा पिरामिड की ऊपरी नोक से नीचे की ओर उतरती है। इस प्रकार से पिरामिड ऊर्जा भूगर्भ एवं ऊपर आकाश द्वारा दोनों ओर से संपादित होती है।
पिरामिड के चार त्रिभुज चहुं ओर ऊर्जा का प्रसार करते हैं। वर्गाकार नींव भी ऊर्जा का प्रसार करती है। पिरामिड की बनावट के कारण सूर्य प्रकाश या कोई भी प्रकाश उसके धरातल पर पड़कर उसके आरपार हो जाता है। पृथ्वी के धरातल पर अपना बल है और वहां पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्रा भी है।
यदि पिरामिड में मंत्र प्रतिष्ठित लक्ष्मी यंत्र स्थापित किया जाए और उसे तिजोरी, गल्ले के ऊपर रखा जाए तो चमत्कारी रूप से धन की वृद्धि होती है। यदि यह कूर्मपृष्ठीय या मेरूपृष्ठीय हो, तो शत-प्रतिशत काम करता है।
असली पिरामिड बड़े-बड़े पत्थरों से मृत शरीर को सुरक्षित और फ्रिज रखने के लिए बनाये जाते हैं। ये एक प्रकार से आवासीय मकान की तरह होते हैं। पर छोटे पिरामिड यंत्र भारतीय पद्धति से मंत्र एवं तंत्र शक्ति के माध्यम से बनाये जाते हैं। ये मन्त्रों से प्राण प्रतिष्ठित होते हैं। अतः ये छोटे होते हुए भी चमत्कारी शक्ति से ओतप्रोत और बड़े प्रभावशाली होते हैं। ये पिरामिड प्रायः धातु के होते हैं।
कागज और प्लास्टिक के पिरामिड चैतन्य शक्ति से युक्त नहीं हो सकते। लकड़ी के पिरामिड भी काम में लिए जा सकते हैं? परतुं शास्त्र सम्मत पवित्र वृक्षों की लकड़ियां ही पिरामिड हेतु उपयोग में लायी जा सकती है, निंदित वृक्ष नहीं। मिश्र में लकड़ी के पिरामिड नहीं बनाए जाते थे। इसका कारण यह है कि वहां संपूर्ण रेगिस्तान है। वर्षा होती ही नहीं। अतः वृक्षों की बाहुल्यता है ही नहीं। आज भी वहां का 97 प्रतिशत भूभाग रेगिस्तान है। लकड़ी का आयुष्य धातु की तुलना में नगण्य है। फिर लकड़ी सड़ जाती है। इसमें कीड़े लग जाते हैं। इसमें कीडे लगने से इसका चूर्ण बन जाता है। अतः लकड़ी के पिरामिडों का विकृत होने का खतरा बना रहता है। लकड़ी वर्षा ऋतु एवं सूर्य की प्रचंड गर्मी दोनों को धारण करने में ज्यादा सक्षम नहीं होती। फिर यह कुसंचालक (Non-conductor of Electricity) होती है। अतः इसकी नोक (Pyramid top) से सूर्य की ऊर्जा रश्मियां शीघ्रता से पिरामिड के भीतरी भाग में प्रवेश नहीं कर पाती, जबकि धातु एवं पत्थर सूर्य की ऊर्जा रश्मियों के सुसंचालक होते हैं।
पिरामड वस्तुओं को खराब होने से बचाता है। इसके लिए वस्तु को विभिन्न आकार के पिरामिड के भीतर रखना पड़ता है। पिरामिड के भीतर जल की बोतल रखकर उस जल का प्रयोग विभिन्न रोगों को दूर करने में किया जाता है। यह जल पीने से शरीर नीरोगी होता है और चित्त में एकाग्रता आती है।
पिरामिड युक्त आकृति में बैठने पर शरीर स्वस्थ रहता है। इसमें बैठकर ध्यान लगाने से मन एकाग्र होता है और शान्ति मिलती है। अष्टधातु का पिरामिड अधिक लाभदायक है। आयुर्वेदिक, एक्यूप्रेशर या अन्य कोई योग, ध्यान लगाने में पिरामिड उसमें बाधक नहीं है।
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