मानव रूपी यन्त्र को क्रियाशील बनाए रखने के लिए इसकी सफाई व शोधन आवश्यक है। शरीर रूपी यन्त्र का बाह्य शोधन स्नान द्वारा हो जाता है। अन्तःशोधन के लिए अनेक क्रिया करनी पड़ती हैं। नासिका द्वारा श्वास लिया जाता है जोकि प्राण के लिए आवश्यक है। नासिका प्राण मार्ग है और इसके शोधन के लिए नेति नामक क्रिया करनी पड़ती है। इसके करने से नजला-जुकाम, कफ, साननोसाइटिस, चेहरे के पक्षाघात, अनिद्रा, मस्तिष्क में जाने वाले रक्त में ऑक्सीजन के प्रभाव की चर्चा करेंगे। इस शोधन के बाद प्राणायाम, ध्यान एवं समाधि में विघ्न कम होते हैं। मन पर नियन्त्रण होता है।
जिन लोगों की नाक की किसी भी प्रकार की शल्य क्रिया हो चुकी है उन्हें रबर नेति, सूत्र नेति, दुग्ध नेति एवं घृत नेति से यथा सम्भव बचना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए तेल नेति एवं जल नेति अत्यन्त लाभदायक है।
नेति पांच प्रकार की होती है-तेल नेति, सूत्र या रबर नेति, जल नेति, घृत नेति एवं दुग्ध नेति।
तेल नेति
सौ ग्राम शुद्ध सरसों का तेल लें। उसमें दो चने के दाने के बराबर मात्रा में शुद्ध नमक डालकर भली-भांति गर्म करें। जब तेल की झार निकल जाए तब उसे ठंडा करें। अब इस तेल को कपडछान कर लें। इसे छने हुए तेल को किसी साफ ड्रॉपर वाली शीशी में भर कर रख लें। रात्रि में सोने से पूर्व इस तेल की सात बूंदें बायीं नासिका में और फिर दायीं नासिका में डालें। ऐसा करने के लिए कुर्सी पर बैठकर गर्दन यथा सम्भव पीछे की ओर कर लें। यदि ऐसा करने में कोई समस्या हो तो बिना तकिए के सीधे लेटकर भी तेल नेति कर सकते हैं। तेल के नाक में प्रवेश करते ही अन्दर का सम्स्त जमा हुआ कफ मुख में आ जाएगा उसे थूकते जाएं। पांच-दस मिनट में आपकी दोनों ओर की नासा छिद्र खुल कर साफ लो जाएंगे और आप हल्का महसूस करेंगे।
सूत्र या रबर नेति
किसी भी योग केन्द्र से बनी बनायी सूत्र नेति प्राप्त कर लें। सूत्र नेति न मिले तो किसी भी सर्जिकल दुकान से 4या 5 नम्बर की कैथेटर टयूब भी ले सकते हैं। लाभ दोनों का बराबर मिलता है। एक कटोरी गर्म पानी में सूत्र या रबर को धो लें। बाद में कागासन में बैठकर मुख को यथा सम्भव ऊपर उठाकर जो स्वर चल रहा हो उस नासा छिद्र में धीरे-धीरे रबर या सूत्र अन्दर की ओर डालें। जब यह कंठ में आ जाए तो तर्जनी व मध्यमा के सहयोग से मुख से बाहर लाएं। अब नेति के दोनों सिरों को दोनों हाथों से पकड़ कर 10-15 बार ऊपर-नीचे खीचें। इस प्रकार नेति चलाने से नासा मार्ग में घर्षण उत्पन्न होने से इस मार्ग की सफाई होती है। अब मुख मार्ग से सूत्र या रबड़ को धीरे-धीरे खींचकर बाहर निकाल लें। इस क्रिया को दूसरे नासा छिद्र में दोहराएं। यह क्रिया नित्य नियम से करनी चाहिए। दस दिन के अभ्यास के बाद दोनों नासाछिद्रों में एक साथ करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। बाद में तेल नेति का तेल सात-सात बूंदें नासा छिद्रों में डालने से अधिक लाभ मिलता है।
जल नेति
इसके लिए आधा लीटर पानी टोटीदार लोटे में ले लें। इसमें दो चुटकी सेंधा नमक युक्त गुनगुना पानी लें जोकि सह सकें। अब कागासन में बैठकर लोटे को हथेली पर रख लें। जो स्वर चल रहा हो उसी हाथ लोटा रखकर नासारन्ध्र में टोटीं लगायें। दायीं ओर टोटी लगायी है तो बायीं ओर सिर झुका लेंगे तो बायीं नासा छिद्र से जल निकलने लगेगा। इससे वायु मार्ग की भली-भांति सफाई हो जाती है। जल नेति के उपरान्त भस्त्रिाका अवश्य करें। इसे करने के लिए सीधे खड़े होकर सिर नीचे झुकाकर एक नासा छिद्र को बन्द कर लें और दूसरे से तेज आवाज के साथ वायु बाहर निकालें। ऐसा करने से समस्त जल बाहर निकल जाएगा। उक्त क्रिया को दोनों नासा छिद्रों से पांच बार दोहराएं। इसके करने से मस्तिष्क के सभी दोष दूर हो जाते हैं। सिर का दर्द और अनिद्रा रोग से मुक्ति मिलती है। बुद्धि तीव्र होती है। बालों का झड़ना व पकना कम होता है। नाक के फोड़े व बढ़ा मांस कम होता है। नेत्र ज्योति बढ़ती है। नेत्र विकारों से मुक्ति मिलती है। कान बहना, कम सुनना आदि कर्ण विकारों से भी मुक्ति मिलती है।
दुग्ध नेति
इस करने के लिए उबाला हुआ दूध ठंडा करके छान लें। इसके पश्चात जल नेति के समान लोटे में डालकर दुग्ध नेति की जाती है। दुग्ध नेति के उपरान्त भस्त्रिका करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लाभ भी जल नेति के समान ही हैं।
घृत नेति
इसके लिए गाय के दूध का घी ले लें और यदि न मिले तो भैंस के दूध का घी भी प्रयोग किया जा सकता है। घी को गुनगुना गर्म कर लें एवं तेल नेति के समान सात बूंदें दोनों नासाछिद्रों में डालें। इसके लाभ भी तेल नेति के समान ही हैं।
मैं भोपाल का रहने वाला हूँ तथा मैं ज्योतिष सीखना चाहता हूँ मार्ग दर्शन करें यदि आपका भोपाल मैं कोई सेंटर हो तो बताएं my mail ID is : dharam_dharam07@rediffmail.com
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