1. ज्ञात-अज्ञात पाप ही अन्तःकरण की मलिनता है। जब तक अन्तःकरण मल रहित, पापरहित नहीं होगा, तब तक वास्तविक दृष्टि दिव्य दृष्टि का उदय नहीं होता।-शंकराचार्य
2. दयाशील अन्तःकरण प्रत्यक्ष स्वर्ग सदृश ही तो है। -विवेकानन्द
3. वास्तविक आनन्द का मूलाधार हमारे अन्तःकरण में ही है। -ज्ञानेश्वर
4. अन्तःकरण सत्य और अच्छे-बुरे का आभास करा देता है।-ज्ञानेश्वर
5. मानव के अन्दर ईश्वरीय उपस्थिति ही अन्तःकरण है।-स्वेडनबोर्ग
6. निरन्तर अशुभ कर्म करने पर अन्तःकरण मलिन हो जाता है।-ज्ञानेश्वर
7. स्वच्छ अन्तःकरण वाला ईश्वर के दर्शन कर सकता है।-स्वेट मार्डन
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