एक बुढ़िया सिर पर गठरी लेकर पैदल जा रही थी। रास्ते में उसे एक घुड़सवार जाते हुए मिला। उसने उसे आवाज देकर रोक लिया और बोली-'बेटा! मेरी यह गठरी अगले गांव तक पहुंचा दोगे। मैं तुम्हारी शुक्रगुजार होंगी। तुम्हें आशीष दूंगी।'
बुढ़िया की बात सुनकर घुड़सवार बोला-'माई! मैं तो जल्दी पहुंच जाऊंगा और तुम पैदल देर से पहुंचोगी। मैं कहां प्रतीक्षा करता रहूंगा।' इतना कहकर वह घुड़सवार आगे चला गया।
घुड़सवार ने थोड़ा आगे जाकर सोचा तो उसके अन्तःकरण ने उसे समझाया मूर्ख गठरी तो ले लेता, वापिस देने की क्या आवश्यकता है। बुढ़िया पैदल आएगी तू पहले ही लेकर निकल जाएगा। यह सोचकर वह वापिस आया और बुढ़िया से बोला-'माई! लाओ गठरी मुझे दे दो। मैं उसे पहुंचा दूंगा।'
यह सुनकर बुढ़िया बोली-'नहीं! अब तो मैं स्वयं ही ले जाऊंगी।'
घुडसवार बोला-'ऐसा क्यों माई ?'
बुढ़िया बोली-जिसने तुमको बताया उसने मुझे भी बता दिया है कि तुम्हें गठरी दूँ या नहीं।'
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