दूर ऊनेन हीयते॥ -अथर्ववेद 10.8.14
बुरी संगत से मनुष्य अवनत होता है।
संगति अच्छी हो तो मनुष्य उन्नति को पाता है और यदि संगति बुरी हो तो उन्नति उसका वरण करती है। संगति के प्रभाव से मनुष्य बहुत कुछ सीखता है। उसे सदैव सत्संग करना चाहिए जिससे अच्छी-अच्छी बातें सीख सके। सत्संग का सर्वप्रथम लाभ एक दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान होता है जिससे मनुष्य एक दूसरे से कुछ सीखता ही है। संगति सदैव अच्छी करनी चाहिए जिससे दूजे के गुणों को ग्रहण करके अवनति से बचा जा सके।
मानुष करे जब सुसंगति का वरण। उन्नति आयी सदैव उसकी शरण॥
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