प्राणायाम स्वास्थ्य हेतु रामबाण है। प्राणायाम शारीरिक शुद्धि तथा आरोग्य प्राप्ति के साथ दीर्घ जीवन की प्राप्ति के लिए भी है। इसकी आवश्यकता धार्मिक अनुष्ठानों में भी होती है। तभी तो दैनिक कृत्य संध्या-वन्दनादि तथा विविध संस्कारों, यज्ञों आदि में सर्वप्रथम प्राणायाम का ही विनियोग किया जाता है।
प्राणायाम क्या है?
प्राणायाम शब्द दो पदों के योग से बना है-प्राण और आयाम। इन दोनों पदों में दीर्घसन्धि करने पर प्राणायाम शब्द की निष्पत्ति होती है। प्राण का अर्थ है निज शरीर से उत्पन्न वायु और आयाम का अर्थ है निरोध(रोकना) अर्थात् प्राण वायु को रोकना।
योग दर्शन में इसका लक्षण दिया है-
तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः॥ अर्थात् सुस्थिर पद्मासन में स्थित होकर बाह्य वायु का आचमन-श्वास और कोष्ठगत वायु का निःसारण-प्रश्वास, इन दोनों का गति विच्छेद अर्थात् उभयाभाव प्राणायाम की परिभाषा है।
हठयोग प्रदीपिका में कहा कि जब तक शरीर में प्राणादि वायु स्थित हैं तभी तक जीव का जीवन है। प्राणवायु के निकल जाने पर मरण सुनिश्चित है, वायु का निरोध करना चाहिए।
अतः स्पष्ट है कि प्राणादि वायु शरीर की प्रधान शक्तियां होती हैं, वे ही संसार के रक्षक हैं, उन्हें वश में करने पर अन्य समस्त दोष स्वतः ही जीर्ण हो जाते हैं। मूलतः प्राणों के ऊपर विजय प्राप्त करना ही प्राणायाम है।
प्राणायाम की उपयोगिता और लाभ
शरीर के लिए अन्न की उपयोगिता सर्वविदित है। शरीर में उत्पन्न रोगों के नाश के लिए जिस प्रकार औषधि का प्रयोग होता है उसी प्रकार शरीरस्थ बाहरी और भीतरी(बाह्याभ्यन्तर) रोगों के समूल नाश के लिए प्राणायाम का प्रयोग होता है।
यह जान लें कि समुचित प्राणायाम द्वारा समस्त रोगों का नाश हो जाता है। परन्तु अविधिपूर्वक प्राणायाम के अभ्यास से समस्त रोग उत्पन्न भी हो सकते हैं, जैसे-हिचकी, खांसी, सांस फूलना, सिर, कान एवं नेत्रा में वेदनादि।
प्राणायाम सदैव गुरु से सीखकर उसी के निर्देशन में करना चाहिए। अन्यथा गलत ढंग से किया गया प्र्राणायाम महारोग तक उत्पन्न कर देता है।
प्राणायाम साधना में उपयुक्त स्थान, काल, परिमित आहार और नाडी-शुद्धि(वात-पित्त-कफ)आवश्यक है।
रोगनाश के साथ-साथ मानसिक सन्तुलन बनाए रखने में भी प्राणायाम का प्रयोग होता है। प्राणायाम के निरन्तर अभयास से चित्त में एकाग्रता आती है।
प्राचीन काल में ऋषिगण प्राणायाम के बल से ही दीर्घजीवी हुआ करते थे। महर्षि अत्रि ने ऋक्षकुल पर्वत पर सौ वर्ष तक प्राणायाम के बल से मात्र वायु-पान करते हुए एक पैर पर स्थित होकर तपस्या की थी।
प्राणायाम से आकाशगमन की शक्ति आती है!
श्रीमद्भागवत तथा घेरण्ड संहिता में कहा है-
प्राणायाम से आकाशगमन की शक्ति आती है, प्राणायाम से समूल रोगनाश होता है, शक्ति बढ़ती है, मानसिक सन्तुलन ठीक रहता है, चित्त में आनन्द की प्राप्ति होती है और प्राणायाम करने वाला सब प्रकार से नीरोगी रहते हुए सुखी रहता है।
प्राणायाम के सेवन से शरीर में फेफड़े की शक्ति बढ़ती है, रुधिर की शुद्धि होती है। समस्त नाडी-चक्रों में चैतन्य आता है।
वस्तुतः प्राणदायक प्राणायाम के सेवन से स्वस्थ एवं नीरोग रहकर पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त कर मानव जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
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