इन्द्र श्रेष्ठानि द्रविणानि धेहि चित्तिं दक्षस्य सुभगत्वमस्मे। पोषं रयीणामरिष्टिं तनूनां स्वाद्मानं वाचः सुदिनत्वमह्नाम् ॥ -ऋग्वेद 2.21.16
हे परमात्मन् ! आप हमें उत्तम ऐश्वर्य, दक्षता की चेतना, धन की समृद्धि, शरीर की कुशलता, वाणी की मधुरता व दिन की कुशलता दीजिए।
नीरोगी शरीर, मधुर वचन एवं दक्षता का बोध ऐश्वर्य प्राप्ति के श्रेष्ठ साधन हैं। दक्षता का बोध लक्ष्य के अनुरूप प्रयत्न कराता है। स्वस्थ शरीर निरन्तर प्रयास में रत् रहता है। मधुर वचन सम्बन्ध बनाते हैं। ये सब ऐश्वर्य पाने के साधन हैं जोकि अन्ततः ऐश्वर्यशाली बना देते हैं।
नीरोगी तन-मन, दक्ष प्रयत्न जाये न खाली । मधुर वचन दे अवसर, बनाए ऐश्वर्यशाली॥
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