एक संत कहीं जा रहे थे।
एक दुष्ट व्यक्ति उन्हें गालियां देता हुआ उनके पीछे-पीछे चल रहा था।
सन्त चुपचाप चलते चले जा रहे थे।
वह व्यक्ति निरन्तर गालियां दिए जा रहा था।
यह सब बहुत देर से चल रहा था।
सन्त को सामने कुछ घर दिखाई पड़ने लगे। दूर कहीं कोई बस्ती देखकर पहले ही वे रुक गए। सन्त को रुका देखकर वह दुष्ट व्यक्ति भी रुक गया और जोर-जोर से गालियां देने लगा।
यह देखकर सन्त बोले-'आपको जो कुछ भी कहना है कह लीजिए। मैं यहां खड़ा हूँ। अब आगे नहीं जाऊंगा। आगे मेरे प्रशंसक रहते हैं जोकि मुझसे सहानुभूति रखते हैं। वे आपकी बातें सुनेंगे तो आपको तंग कर सकते हैं।'
दुष्ट व्यक्ति सन्त की बात सुनकर लज्जित हो गया और हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगा।
सन्त ने दुष्ट व्यक्ति को क्षमा कर दिया। बाद में उसे साथ लेकर उस बस्ती में गए और उसकी बहुत प्रशंसा करी तो सभी ने उसका भरपूर स्वागत किया। यह सब देखकर दुष्ट व्यक्ति को मन ही मन अपने कृत्य पर ग्लानि होने लगी, लेकिन इस बात की प्रसन्नता थी कि उसने सन्त से अपने इस अपराध की क्षमा मांग ली थी।
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