नवविवाहित जोड़ों में तीस प्रतिशत दम्पत्ति पहले दो साल के अन्दर तलाक लेने को क्यों प्रेरित हो जाते हैं? सर्वप्रथम जिम्मेदारी उन परिवारों की होगी जिनके अपने निवास या उनके बच्चों की ससुराल में रसोई या निवास के उत्तर-पूर्व अर्थात् ईशान में आग जलती है। ऐसे लोगों के पुत्र-पुत्रवधु तनाव में, गृह-कलह से परेशान व परस्पर दम्पत्ति झगड़ते रहते हैं। इनके अतिरिक्त जिन परिवारों के गृह में सीढ़ियों के नीचे रसोई होगी उनकी लड़कियां एवं पुत्र वधुओं की जलकर मरने की सम्भावना बढ़ जाती है और सीढ़ियों के नीचे बाथरूम या शौचालय होगा उनके गृह में गृहक्लेश के कारण जहर खाकर आत्महत्या करने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। ऐसे बाथरूम, शौचालय या रसोई में फाल्स सीलिंग करा लेने से यह दोष दूर हो जाता है।
समाज का प्रत्येक वर्ग निर्धन या धनी, अनपढ़ या पढा+-लिखा, विद्वान कोई भी विवाह के मामले में ज्योतिषियों के ऊपर सर्वाधिक निर्भर है। होना भी चाहिए क्योंकि विज्ञान अभी तक मानव सूक्ष्म भावनाओं को समझने में पूर्णतः सशक्त नहीं हुआ है। इससे भी बड़ी त्रुटि यह है कि ज्योतिषी जोकि विद्वान तो हैं पर पूर्णतः समयानुसार अपने शास्त्र में कोई सुधार नहीं ला पाए हैं।
मंगली एवं कालसर्प दोष आदि को ज्योतिषी वैवाहिक विलम्ब व तनाव का आधार मानकर चलते हैं। मंगली होने का अभिप्रायः दाम्पत्य सुख में उग्रता एवं ऊर्जा का द्योतक है। वैवाहिक विलम्ब एवं तनाव में अन्य ग्रहों के योग व दृष्टि सम्बन्ध पाए जाते हैं। समयानुसार निरन्तर नित नया शोध होता रहना चाहिए जोकि हो रहा है पर उतना नहीं जितने की आवश्यकता है।
मांगलिक दोष या कुज दोष को लेकर समाज में नारी वर्ग का जितना अपमान व अनादर हुआ है वह अवसाद का विषय है। करोड़ों कन्याओं को मंगली दोष के अज्ञानता के कारण कभी पृथकता, कभी वैधव्य, कभी अत्याचार, कभी हत्या, कभी हिंसा जैसे भयावह दुष्परिणामों का भागीदार बनना पड़ा है। कुंडली में मंगल दोष से भयभीत होकर जो अभिभावक अपने पुत्र-पुत्रियों का कृत्रिम कुंडली मेलापक के लिए प्रस्तुत करते हैं वे किसी दूसरे को नहीं स्वयं को धोखा देते हैं और अपने बच्चों व परिवार के साथ क्रूर एवं अक्षम्य अपराध करते हैं।
मेलापक सारिणी व मुहूर्त्त प्रणाली पर भी वर्तमान एवं भविष्य के सन्दर्भ में रखकर नए सिरे से अनुसंधान करना चाहिए। मकान, दुकान, व विवाह का मुहूर्त्त काल स्थिर लग्न में ही होना चाहिए जबकि चर व द्विस्वभाव लग्न में भी विवाह के मुहूर्त्त हो रहे हैं। इसके लिए समाज भी दोषी है जोकि दैवज्ञ द्वारा सुझाए लग्न में फेरे न करके व्यस्तता के कारण अन्य समय में फेरे करने को बाध्य कर देते हैं यह जाने बिना कि वह लग्न अशुभ है या शुभ।
वर-वधू के माता-पिता को चाहिए कि वे ज्योतिषी द्वारा सुझाए गए मुहूर्त्त एवं लग्न में ही विवाह की रस्म पूर्ण कर लें अन्यथा विवाह मुहूर्त्त सुझवाने का कोई लाभ नहीं है। व्यवहारिक रूप में देखा गया है कि विवाह में शामिल समस्त लोग अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते है-कोई शराब पीने में मस्त है तो कोई डांस में। कुछ लोग फोटो खिंचवाने में व्यस्त हैं तो कुछ बातें बनाने में। ऐसे में अधिकांशतः विवाह मुहूर्त्त निकल जाता है और बाद में पूरा समाज झेलता है पारिवारिक कलह, पति-पत्नी के सम्बन्धों में कटुता एवं तलाक की त्रासदी।
जिन जातकों का विवाह हो रहा है यदि उन दोनों या किसी एक की कुंडली में सूर्य पर शनि व बुध या मंगल या बुध-मंगल दोनों पर राहु गोचरवश भ्रमण करे या दृष्टि सम्बन्ध बनाए तो तब तक विवाह नहीं करना चाहिए जब तक यह गोचर प्रभाव समाप्त नहीं हो जाता है। यदि करेंगे तो नव दम्पत्ति का तलाक या आत्महत्या या आग से जल मरने की सम्भावना उत्पन्न हो जाएगी। मेलापक में सुखी वैवाहिक जीवन के लिए 36 में से अल्पतम 18 गुणों का होना आवश्यक माना गया है। लेकिन फिर भी यह आवश्यकता पूर्ण करने के उपरान्त भी झागड़े, तलाक या आत्महत्याएं होती रहती हैं। कुछ दम्पत्ति एक दूसरे के साथ रहते हैं परन्तु उनका मन नहीं मिलता है। कई लोग सिर्फ अच्छे परिवार में विवाह के लिए या कोई एक मांगलिक होने के कारण नकली जन्मपत्री मिलवाकर विवाह कर देते हैं अथवा सिर्फ नाम से ही मिलान करके विवाह कर दिया जाता है। कई बार ज्योतिषी भी दक्षिणा के आधार पर सिर्फ पांच मिनट में ही जन्मपत्रिका का मिलान कर देते हैं। यह गूढ़ विद्या है और पांच मिनट में ही कुंडली मिलान कर देना सम्भव नहीं है। जबकि कुंडली का पूर्ण विश्लेषण करना चाहिए। वे मंगल की स्थिति भी नहीं देखते हैं कि मंगल किस राशि व किस भाव में है। मंगल के 1, 4, 7, 8 व 12वें भाव में मंगल होने के मात्र से ही मंगली का हौवा बैठा देते हैं। कुंडली मिलान तो वर-वधू अर्थात् दो जीवन के बारे में पूर्ण जानकारी पूर्व में ही प्राप्त कर लेने की रीति है जिससे जीवन सुखी, सौहार्दपूर्ण व सफल रूप से जीवनयापन कर सके। यह सब गम्भीर होकर गहन अध्ययन के उपरान्त ही जाना जा सकता है।
दाम्पत्य कलह के पीछे भी अनेक कारण अपनी भूमिका निभाते हैं। यदि किसी भी कारण का निदान न हो तो स्थिति बिगड़ जाती है, वे कारण निम्न हैं-पति-पत्नी में वैचारिक मतभेद होना, परस्पर अहम्, शंका व अति महत्त्वकांक्षा होना या एक-दूसरे के प्रति अविश्वास, काम कला में न्यूनाधिकता होना, आर्थिक संकट होना, भाग्यहीनता, दोनों में किसी एक का रोगी होना, पारिवारिक कलह, गुण-मिलान, शिक्षा, व सन्तान न होना आदि किसी एक में चारित्रिक दोष का होना, एक दूसरे को समय न दे पाना या पति या पत्नी का किसी भी कारण से विदेश में प्रवास हो, किसी एक के परिवार के अन्य सदस्यों का हस्तक्षेप होना।
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए इन सबकी भूमिका को नजर अन्दाज नहीं करना चाहिए-लग्न व उसका स्वामी अर्थात् लग्नेश, राशि तथा राशि का स्वामी, षष्ठ भाव एवं षष्ठेश, सप्तम भाव व सप्तमेश, मंगल, शुक्र एवं गुरु की स्थिति विशेषकर स्त्राी के लिए, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम व द्वादश भाव तथा इनके स्वामी, नाड़ी दोष, राशि दोष, षडष्टक योग।
निष्कर्षतः यह स्पष्ट है कि वर्तमान में बढ़ रहे तलाक के लिए केवल अभिभावक ही जिम्मेदार नहीं हैं इसमें समाज व ज्योतिषियों का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
vivah me gun milan ka mai samrthan karata hun/mere ek ristedar ne 12 gun milane par hi kanya ka vivah kar diya tha ,do bachche hone ke bavajud aaj tak pati patni me garh kalesh jari hai||
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