कर्मकांड एवं यन्त्र लेखन में अष्टगंध का प्रयोग होता है। अष्टगंध क्या है और कितने प्रकार की होती है।
शास्त्रों में तीन प्रकार की अष्टगन्ध का वर्णन है, जोकि इस प्रकार है-
शारदा तिलक के अनुसार अधोलिखति आठ पदार्थों को अष्टगन्ध के रूप में लिया जाता है-चन्दन, अगर, कर्पूर, तमाल, जल, कंकुम, कुशीत, कुष्ठ। यह अष्टगन्ध शैव सम्प्रदाय वालों को ही प्रिय होती है।
दूसरे प्रकार की अष्टगन्ध में अधोलिखित आठ पदार्थ होते हैं-कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि। यह अष्टगन्ध शाक्त व शैव दोनों सम्प्रदाय वालों को प्रिय है।
वैष्णव अष्टगन्ध के रूप में इन आठ पदार्थ को प्रिय मानते है-चन्दन, अगर, ह्रीवेर, कुष्ठ, कुंकुम, सेव्यका, जटामांसी, मुर।
अन्य मत से अष्टगन्ध के रूप में निम्न आठ पदार्थों को भी मानते हैं-अगर, तगर, केशर, गौरोचन, कस्तूरी, कुंकुम, लालचन्दन, सफेद चन्दन।
आठ सुगन्धित द्रव्य जिनको मिलाकर देवपूजन यन्त्रलेखन आदि के लिये सुगन्धित चन्दन तैयार किया जाता है,विभिन्न देवताओं के लिये इसमे कुछ वस्तुयें अलग अलग होती है,साधारणत: इसमे चन्दन, अगर केसर, कर्पूर, शैलज, जटामासी और गोरोचन माने जाते हैं.
ये पदार्थ भली-भांति पिसे हुए, कपड़छान किए हुए, अग्नि द्वारा भस्म बनाए हुए और जल के साथ मिलाकर अच्छी तरह घुटे हुए होने चाहिएं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी देकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करें।