प्रत्येक यह जानना चाहता है कि सन्तान की प्रकृति कैसी होगी। जन्मकुंडली में पंचमेश व पंचम भाव पाप प्रभाव से मुक्त हो तो सन्तान सुख उत्तम रहता है। जन्म कुंडली के अतिरिक्त सप्तमांश कुंडली से सन्तान सुख का विचार किया जाता है।
सप्तमांश कुंडली से भी सन्तान संख्या का विचार किया जा सकता है। सप्तमांश कुंडली का स्वामी ग्रह या सप्तमांश लग्न को जितने ग्रह देखते हों उतनी सन्तान होती है।
सप्तमांश लग्न में पापी ग्रह हों या पापग्रहों से सम्बन्ध हो या पापग्रहों की दृष्टि हो तो सन्तान सुख में विन-बाधाएं आती हैं या चिन्ताएं सताती रहती हैं कि सन्तान का क्या होगा या वो कैसा व्यवहार करेगी या उसका भविष्य कैसा होगा?
सप्तमांश स्वामी के अनुसार सन्तान सुख इस प्रकार होता है-सप्तमांश स्वामी सूर्य हो तो जातक की सन्तान हष्ट-पुष्ट, सुन्दर, तेजस्वी, क्रोधी, धन-सम्पत्ति से युक्त, साहसी, उद्यमी एवं पराक्रमी होती है। सप्तमांश स्वामी चन्द्र हो तो जातक की सन्तान सुन्दर, मध्यम कद, जलीय पदार्थों को पसन्द करने वाली, मधुरभाषी एवं व्यवहार कुशल होती है। सप्तमांश स्वामी मंगल हो तो जातक की सन्तान रक्तवर्ण, गोल आंखें, क्रोधी स्वभाव, साहसी, खेल-कूद में रुचि रखने वाली, पित्त दोष से पीड़ित होती है। सप्तमांश स्वामी बुध हो तो जातक की सन्तान सौम्य आकृति वाली, अनुपातिक शरीर, बुद्धिमान, वाक्पटु, तर्क-वितर्क करने में कुशल, उच्च शिक्षा प्राप्त, धनी एवं व्यवहार कुशल होती है। सप्तमांश स्वामी गुरु हो तो जातक की सन्तान विद्यावान्, विद्वान, धार्मिक, भाग्यशाली, सुगठित शरीर, गुणवान, गम्भीर एवं विद्वता पूर्ण वाणी का प्रयोग करने वाली होती है। सप्तमांश स्वामी शुक्र हो तो जातक की सन्तान सुन्दर, आकर्षक, विनम्र, विनयशील, विद्यावान, सिनेमा, संगीत व शिल्प कला में रुचि रखने वाली होती है। सप्तमांश स्वामी शनि हो तो जातक की सन्तान दुबली-पतली-लम्बी, तामसिक वृत्ति व आलसी होती है।
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