कन्यादान या पाणिग्रहण से भी अधिक महत्व रखता है-कन्या के हाथ पीले करना। लोक चर्चित है कि मेरी कन्या के हाथ पीले हो जाएं तो गंगा नहाऊँ। वास्तव में कन्या का हाथ वर के हाथों में रखने के पूर्व हाथ की हथेलियों में हल्दी लगाई जाती है, इसी को कहते हैं हाथों को पीले करना।
विवाह को निर्विन पूर्ण करने की शुभ सूचना के रूप में हरिद्रा (हल्दी) गणेश की उपस्थिति मानी जाती है। गणेशके निर्विन रूप का नाम हरिद्रा गणपति है, जिसकी तान्त्रिक पूजा में विशेष महत्व है। हरिद्रा की सैकड़ों गांठों में कभी-कभी गणेश की मूर्ति का चित्र मिल जाता है। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। दूसरे लक्ष्मी अन्नपूर्णा भी हरिद्रा कहलाती है। जहां लक्ष्मी नहीं हो तो उसे अदरिद्रा कहते हैं। श्री सूक्त में इसका वर्णन है सरस्वती श्वेतवस्त्र, दुर्गा रक्तवस्त्र, लक्ष्मी पीतवस्त्र मानी गई है। हरिद्रा लक्ष्मी स्वरूपा है। दोनों पीतरंग प्रिय है, तभी तो धन-धान्य की समृद्धि एवं निर्विन जीवन के लिए दीपावली के दिन लक्ष्मी विनायक की पूजा की जाती है। हल्दी से हाथ पीले करने का तात्पर्य यह है कि कन्या मातृगृह छोड़कर पतिगृह में गृहलक्ष्मी बनने जा रही है। गुरु नक्षत्रा पीतवर्ण है इसलिए पीत पुखराज पहनने से गुरु ग्रह की कृपा मिलती है। गुरुबल भी हाथ पीले करने से बढ़ता है। वानप्रस्थी सन्त पीतवस्त्र पहनते हैं इसलिए हाथ में पीतरंग लगाने से अभिप्राय है कि मैं गृहस्थाश्रम से वानप्रस्थ आश्रम तक साथ देते हुए सदाचारी सन्त जीवन व्यतीत करूंगी।
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