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रविवार, जुलाई 18, 2010

द्वादशांश कुंडली का फल कैसे विचारें?-पं ज्ञानेश्वर



द्वादशांश कुंडली जन्मकुंडली  में बनी रहती है।  द्वादशांश अर्थात राशि के बारहवें भाग को कहते हैं। राशि का बारहवां भाग 2 अंश 30 कला का होता है। द्वादशांश की गणना  प्रथम अपनी  ही  राशि से होती है। इस कुण्डली से माता-पिता के सुख का विचार विशेष रूप से किया जाता है। द्वादशांश कुण्डली से फल कथन के अन्य अनमोल सूत्र बताते हैं।
द्वादशांश कुण्डली का फल कथन के अनमोल सूत्र
द्वादशांश कुंडली देखते समय अधोलिखित सूत्रों का पालन करना  चाहिए-
9. द्वादशांश लग्न का स्वामी बुध या द्वादशांश लग्न में मिथुन या कन्या राशि हो और यदि द्वादशांश लग्न में सूर्य स्थित हो तो जातक को माता-पिता का स्नेह, उनका सुख एवं सहयोग के साथ दीर्घकाल तक छत्रछाया मिलती है। यदि द्वादशांश लग्न में चन्द्र स्थित हो तो जातक सौम्य स्वभाव का, तकनीकी ज्ञान सम्पन्न, प्रतिष्ठित, यशस्वी, सेवा सत्कार करने वाला व सुखी होता है और माता-पिता का सुख पाता है। यदि द्वादशांश लग्न में मंगल स्थित हो तो जातक उद्यमशील, धनी, बहुमूल्य वस्त्र व आभूषणों से युक्त, राज्य सरकार से पीड़ित, धैर्यशाली, सुन्दर पत्नी एवं माता-पिता का सुख पाने वाला होता है। यदि द्वादशांश लग्न में बुध स्थित हो तो जातक ज्योतिष, अध्यात्म में रुचि रखने वाला, विद्वान, ललित कलाओं में निपुण, शत्रु पर प्रभावी होता है। माता-पिता का सुख सामान्य होता है। यदि द्वादशांश लग्न में गुरु स्थित हो तो जातक प्रतिष्ठित, सर्वगुण सम्पन्न एवं पुत्र, भाई-बन्धुओं का स्नेह पाने वाला होता है। माता-पिता का सुख पाता है। यदि द्वादशांश लग्न में शुक्र स्थित हो तो जातक सुन्दर, आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी, भोग-विलास में रत, खर्चीले स्वभाव वाला एवं पिता से वैचारिक मतभेद व वैमनस्य रखने वाला होता है। यदि द्वादशांश लग्न में शनि स्थित हो तो जातक प्रतिभाशाली, व्यवहार कुशल, विनम्र, समयानुसार व्यवहार करने वाला, व्यवस्थित जीवन जीने के साथ-साथ माता-पिता का सामान्य सुख पाता है।
10. द्वादशांश लग्न का स्वामी गुरु या द्वादशांश लग्न में धनु या मीन राशि हो और यदि द्वादशांश लग्न में सूर्य स्थित हो तो जातक स्त्रियों में प्रिय, विनयशील, संगीत में रुचि रखने वाला, धनी, धार्मिक एवं माता-पिता के सुख से सुखी होता है। यदि द्वादशांश लग्न में चन्द्र स्थित हो तो जातक सौम्य, सुन्दर, आकर्षक, भौतिक सुखों से युक्त होता है। यदि द्वादशांश लग्न में मंगल स्थित हो तो जातक बुद्धिमान, तर्कविर्तक करने वाला, स्वतन्त्रता प्रिय, धनी, पिता से सहायता पाने वाला व पैतृक धन से सुखी होता है। यदि द्वादशांश लग्न में बुध स्थित हो तो जातक प्रतिष्ठित, माता-पिता, भाई बन्धुओं का सहयोग व स्नेह पाने वाला होता है। यदि द्वादशांश लग्न में गुरु स्थित हो तो जातक स्वस्थ, सौम्य एवं धार्मिक, परिवार व किसी संस्था का मुखिया होता है। यदि द्वादशांश लग्न में शुक्र स्थित हो तो जातक प्रतिष्ठित, पुत्रावान्‌, धनी, धार्मिक व समस्त भौतिक सुख पाता है। यदि द्वादशांश लग्न में शनि स्थित हो तो जातक संकोची, विनम्र, मान-सम्मान पाने वाला, प्रतिष्ठित और माता-पिता व भाईयों का सुख पाता है।
11. द्वादशांश लग्न का स्वामी शुक्र या द्वादशांश लग्न में वृष या तुला  राशि हो और यदि द्वादशांश लग्न में सूर्य स्थित हो तो जातक शूरवीर, कला में निपुण व यशस्वी होता है। यदि द्वादशांश लग्न में चन्द्र स्थित हो तो जातक विनम्र, धनी, भौतिक सुख पाता है। यदि द्वादशांश लग्न में मंगल स्थित हो तो जातक सुन्दर, शत्राु को हराने वाला, परिश्रमी और स्त्रिायों में प्रिय होता है। यदि द्वादशांश लग्न में बुध स्थित हो तो जातक सौम्य, धार्मिक, ज्योतिष एवं पढ़ने का शौकीन होता है। यदि द्वादशांश लग्न में गुरु स्थित हो तो जातक प्रभावशाली वक्ता, विद्वान, धार्मिक, संगीत प्रेमी, परिवार या संस्था का मुखिया होता है।  यदि द्वादशांश लग्न में शुक्र स्थित हो तो जातक संगीत-कला प्रेमी, समाज में प्रतिष्ठित, सौन्दर्य प्रेमी व रति कुशल होता है। यदि द्वादशांश लग्न में शनि स्थित हो तो जातक खाने-पीने का शौकीन, वाहन, भूमि तथा सुन्दर, सुशील जीवनसाथी से युक्त होता है।
12. द्वादशांश लग्न का स्वामी शनि या द्वादशांश लग्न में मकर या कुम्भ राशि हो और यदि द्वादशांश लग्न में सूर्य स्थित हो तो जातक दुर्बल, पतला, डरपोक, चिड़चिड़ा एवं यौन क्षमता में निर्बल होता है। यदि द्वादशांश लग्न में चन्द्र स्थित हो तो जातक सत्यनिष्ठ, धनी, आलसी, शौक कम रखता है, भाई-बहिन उसकी बहुता उसकी उपेक्षा या त्याग करते हैं। यदि द्वादशांश लग्न में मंगल स्थित हो तो जातक झगड़ालू, चंचल, अधिक बोलने वाला, भाई-बन्धुओं से झगड़ने वाला होता है। यदि द्वादशांश लग्न में बुध स्थित हो तो जातक अपव्ययी, मध्यम आर्थिक स्थिति वाला एवं रोग से युक्त हाकर कष्ट पाता है। यदि द्वादशांश लग्न में गुरु स्थित हो तो जातक कष्ट पाने वाला, अश्लील बातें करने वाला और बकवादी होता है। यदि द्वादशांश लग्न में शुक्र स्थित हो तो जातक जन्म स्थान से दूर रहने वाला, दुर्बल शरीर व रोगों से पीड़ित होता है। यदि द्वादशांश लग्न में शनि स्थित हो तो जातक स्थिर बुद्धि, प्रतिष्ठित, मुखिया, दुराचारी भी हो सकता है।

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