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शनिवार, जुलाई 17, 2010

सौन्दर्य को चार चांद लगाते हैंदांत-डॉ.उमेश पुरी'ज्ञानेश्वर'



दांत व्यक्ति के सौंदर्य के चार चांद लगाते हैं। मुस्कान की शोभा बढ़ा देते हैं दांत। दांत सुंदर, सफेद, मोतियों की तरह पंक्तिबद्ध हों तो वे व्यक्तित्व में आकर्षण उत्पन्न करते हैं। खाने के लिए दांतों की भूमिका सर्वविदित है। दांत जीवन भर साथ दें, इसके लिए प्रतिदिन दांतों सुबह सवेरे और रात्रि को सोने से पूर्व भली-भांति देखभाल आवश्यक है। यदि दांतों की सफाई सही तरह नहीं होगी, तो दांतों में भोजन के कण सड़ने लगेंगे और उनसे दुर्गंध आने लगेगी, जिससे दंतरोग उत्पन्न होंगे और दांत साथ छोड़ देंगे। यह लोक चर्चित है कि दांत गए स्वाद गया अर्थात दांतों से ही भोजन का पूर्ण आनंद लिया जा सकता है।
दांत के प्रकार
आयु के अनुसार दांत दो तरह के होते हैं-दुग्ध दांत और पक्के दांत। दुग्ध दांत-ये अस्थायी और गिनती में बीस होते हैं। दस ऊपर के जबड़े में और दस नीचे के जबड़े में और जबड़े के दायें और बायें पांच-पांच दांत होते हैं, जिनमें दो छेदक, एक वदंत, दो चर्वण दंत होते हैं। जन्म के सात मास के बाद पहला दांत निकलता है और दो वर्ष की आयु तक सभी दुग्ध दांत निकल आते हैं। पक्के दांत-ये गिनती में बत्तीस होते हैं। ये स्थायी दांत सोलह ऊपर के और सोलह निचले जबड़े में होते हैं। दोनों जबड़ों के दायें-बायें आठ-आठ दांत होते हैं, जिनमें दो छेदक, एक खदंत, दो पूर्व चर्वण, तीन चर्वण हैं। बारह वर्ष की आयु तक सभी पक्के दांत निकल आते हैं, किंतु तीसरा चर्वण दांत सत्राह से पच्चीस वर्ष की आयु में निकलता है।
दांत क्या है?
दांत की मुख्य तीन परतें होती हैं। दंत वल्क-यह दांत का बाहरी भाग है, जो शरीर का सबसे ठोस और सख्त पदार्थ है और भोजन चबाने में सहायक होता है। दंत धातु-यह दंत वल्क के नीचे की परत है, जिसमें हड्डीनुमा तत्त्व होता है। दंत रक्त शिराएं-ये दंत धातु के नीचे होती हैं। इनमें रक्त शिराएं और स्नायु तंत्रा का जाल होता है, जो दांतों में दर्द या ठंडे-गर्म की अनुभूति करवाता है। दांतों की जड़ें मसूडो में होती हैं, जो दांतों को मजबूती से जकड़े रखती हैं तथा हिलने-डुलने नहीं देतीं।
दांतों के रोग  
दांतों के रोगों का मुख्य कारण दांतों की सफाई का अभाव है। दांतों की भली-भांति सफाई और देखभाल होती रहे तो दांतों में भोजन के कण उत्पन्न होती है, जिससे कीटाणु पैदा होते हैं, जो दांतों की जड़ों को धीरे-धीरे खोखला बना देते हैं, जिससे मसूड़े कमजोर हो जाते हैं। दांतों की जड़ें गल जाती हैं और दांतों की ऊपरी परत दंत वल्क खत्म होने लगती है और दंत रक्त शिराएं कमजोर हो जाती है, जिससे दांतों में दर्द होता है, ठंडा-गर्म खाने-पीने में परेशानी होती है और धीरे-धीरे दांत साथ छोड़ देते हैं। दांतों के रोगो में सबसे भयंकर और हानिकारक रोग है 'पायरिया'। पायरिया में पहले मसूडों में हल्की ठंडक होती है, जिससे मसूडों के किनारों से पीप निकलने लगती है। फिर दांतों की शक्ति क्षीण होने लगती है, मसूडों से रक्त भी आने लगता है। तीसरी अवस्था में रोग अपना उग्र रूप धारण कर लेता है। पीप पेट में जाने लगती है, जिससे और भी कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। पान, जर्दा तंबाकू का सेवन करने वालों को पायरिया जल्द होता है।
दंत उपचार
1. नीला थोथा और सफेद कत्था दोनों को बराबर मात्रा में लें और इन्हें तवे में भून कर, अच्छी तरह मिला कर, महीन पीस लें। इसे दिन में दो-तीन बार अंगुली से मसूड़ों पर लगा कर, थोड़ी देर सिर झुका कर, मसूड़ों की मालिश करें और बाद में कुल्ला कर मुंह साफ करने से मसूड़ों की सूजन-सड़न, दर्द और दुर्गंध आना खत्म हो जाते हैं। 2. लौंग और नमक को पीस कर, चूर्ण बना कर, दांतों पर लगाने से दांतों का हिलना रुक जाता है। 3. पीपल की छाल का चूर्ण बना कर दांतों और मसूड़ों की मालिश करने से दांतों का हिलना तथा दर्द ठीक होते हैं। 4. लौंग, इलायची और खस के तेल को मिला कर दांतों तथा मसूडों पर लगाने से पायरिया में आराम मिलता है। 5. जले हुए आंवले में थोड़ा सेंधा नमक मिला कर, सरसों के तेल के साथ मसूडों और दांतों की मालिश से पायरिया रोग दूर होता है। 6. नीम की पत्तियां, काली मिर्च, काला नमक रोजाना सेवन करने चाहिएं। इससे रक्त साफ होता है और पायरिया में आने वाला पीप खत्म हो जाता है जिससे यह रोग ठीक होता है। 7. समुद्र झाग तथा तिल मिला कर खाने में मसूडों की दुर्गंध ठीक हो जाती है। 8. फिटकरी को नमक के साथ मिला कर दांतों और मसूडों की मालिश से मसूडे मजबूत होते हैं। 9. लौंग का तेल दांतों के खोह पर लगाने से दर्द ठीक होता है। 10. अमृतधारा और दालचीनी का तेल दांतो के खोह पर लगाने से दर्द ठीक होता है। 11. नमक, हल्दी और सरसों का तेल परस्पर मिलाकर दांत साफ करने से मजबूत ओर सौन्दर्य में चार चांद लगाते हैं। 
ज्योतिष की दृष्टि में दांत
ज्योतिष से भी दांत सम्बन्धी कष्ट को जाना जा सकता है। यहां दांत सम्बन्धी कुछ योग दे रहे हैं जिससे आप यह ज्ञात कर सकते हैं कि जातक को दंत रोग होगा या नहीं होगा तो कब। 
1. शनि-राहु दांतों में दर्द और रोग उत्पन्न करते हैं। दांतों की तीन मुख्य परतों में पहली और दूसरी परत, अर्थात दंत वल्क और दंत धातु पर सूर्य का प्रभाव रहता है। तीसरी परत पर चंद्र और मंगल का प्रभाव रहता है। 
 2. जब सूर्य, चंद्र, मंगल शनि-राहु से पीड़ित होते हैं तो दंत रोग होता है। 
3. द्वितीय भाव मुख का है और यदि द्वितीय भाव भी शनि-राहु से युत या  दृष्ट है तो दंत रोग या दांतों की सुंदरता पर प्रभाव पड़ता है। 
4. लग्न और लग्नेश यदि शनि-राहु से युत या दृष्ट है तो दंत रोग हो सकते हैं। 
5. द्वितीयेश षष्ठेश के साथ युत होकर अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो दंत रोग होते हैं।          
 6. केतु द्वितीय स्थान पर हो, तो दांत ऊंचे होते हैं, अर्थात्‌ दांत लंबे तथा बाहर की ओर होते हैं। 
7. सप्तम भाव में अशुभ ग्रह हों और शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़े तो जातक दांतों के किसी न किसी रोग से पीड़ित होता है। 
8. राहु लग्न में, या पंचम में हो, तो दंत रोग होते हैं। 
9. मेष या वृष राशि लग्न या द्वितीय भाव से संबंध बनाए और अशुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो तो दंत संबंधी रोग होते हैं। 
द्वादश लग्न और दांतों के रोग  
द्वादश लग्नानुसार दंत विचार इस प्रकार है। मेष लग्न हो और राहु और बुध द्वितीय भाव में, सूर्य-शनि लग्न में हों और लग्नेश त्रिाक भावों में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। वृष लग्न हो और चन्द्र और केतु द्वितीय भाव में, गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में, शनि आठवें, लग्नेश एकादश या द्वादश भाव में हों दांत संबंधी रोग होते हैं। मिथुन लग्न हो और सूर्य-राहु की युति पंचम भाव में, मंगल एकादश, लग्नेश षष्ठ भाव में हो तो दंत विकार जातक को होते हैं। कर्क लग्न हो और राहु षष्ठ भाव में, लग्नेश एकादश भाव में, सूर्य-शनि की युति पंचम भाव में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं।  सिंह लग्न हो और राहु या केतु लग्न में हों, सूर्य त्रिाक भाव में शनि से युत या दृष्ट हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। कन्या लग्न हो और द्वितीयेश मीन राशि में शनि से युत हो, लग्न पर मंगल की दृष्टि हो, लग्नेश केतु से युत या दृष्ट हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। तुला लग्न हो और लग्नेश आठवें हो, शनि द्वितीय हो, सूर्य केतु से युत सा दृष्ट हो, गुरु लग्न व लग्नेश पर दृष्टि डाले तो दंत रोग होते हैं। वृश्चिक लग्न हो और मंगल व शनि षष्ठ भाव में, बुध लग्न में और सूर्य द्वादश भाव में हो, राहु अष्टम भाव में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। धनु लग्न हो और लग्नेश षष्ठेश के साथ द्वितीय भाव में शनि से दृष्ट हो, राहु लग्न में हो तो जातक दंत रोग से पीड़ित होता है। मकर लग्न हो और शनि पंचम भाव में, सूर्य-केतु की युति द्वितीय भाव में, चन्द्र सप्तम भाव में हो तो दांत संबंधी रोग होते हैं। कुम्भ लग्न हो और शानि अष्टम भाव में, गुरु षष्ठ भाव में, द्वितीय भाव व द्वितीयेश राहु या केतु से दृष्ट हो तो जातक दांत संबंधी रोग होते हैं। मीन लग्न हो और शुक्र द्वितीय भाव में, सूर्य-चन्द्र लग्न में राहु से दृष्ट या युत हों, शनि पंचम या अष्टम भाव में हो तो जातक को दांत संबंधी रोग होते हैं।
दांतों के रोग कब होते हैं ?  
पूर्व चर्चा से यह ज्ञात हो गया होगा कि दंत रोग क्यों और किस कारण होते हैं। दंत रोग के पार्श्व में ग्रहों की अपनी भूमिका होती है।  दंत रोग उत्पन्न करने वाले कारक ग्रहों को चयन करे लें, जब-जब ये इन ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर दशा आएगी दांतों में पीड़ा होगी। दंत का रोग देने वाले योग कारक ग्रह जब-जब गोचर में निर्बल होते हैं दंत संबंधी पीड़ा या कष्ट झेलना पड़ता है।

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