नए रूप रंग के साथ अपने प्रिय ब्‍लॉग पर आप सबका हार्दिक स्‍वागत है !

ताज़ा प्रविष्ठियां

संकल्प एवं स्वागत्

ज्योतिष निकेतन संदेश ब्लॉग जीवन को सार्थक बनाने हेतु आपके लिए समर्पित हैं। आप इसके पाठक हैं, इसके लिए हम आपके आभारी रहेंगे। हमें विश्‍वास है कि आप सब ज्योतिष, हस्तरेखा, अंक ज्योतिष, वास्तु, अध्यात्म सन्देश, योग, तंत्र, राशिफल, स्वास्थ चर्चा, भाषा ज्ञान, पूजा, व्रत-पर्व विवेचन, बोधकथा, मनन सूत्र, वेद गंगाजल, अनुभूत ज्ञान सूत्र, कार्टून और बहुत कुछ सार्थक ज्ञान को पाने के लिए इस ब्‍लॉग पर आते हैं। ज्ञान ही सच्चा मित्र है और कठिन परिस्थितियों में से बाहर निकाल लेने में समर्थ है। अत: निरन्‍तर ब्‍लॉग पर आईए और अपनी टिप्‍पणी दीजिए। आपकी टिप्‍पणी ही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है।

बुधवार, जून 09, 2010

संकीर्णता



स्वामी योगानन्द गंगातट पर बैठे अपने शिष्यों को जीव और ब्रह्म की एकता का सार बता रहे थे। जिज्ञासु शिष्य बोला,'स्वामी जी ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ फिर इस भिन्नता के होते हुए एकता कैसी?' योगानन्द जिज्ञासु शिष्य से बोले,'एक लोटा गंगाजल भर लाओ।' शिष्य नीचे गंगा से लोटे में जल भर लाया। स्वामी जी बोले,'गंगा के जल में और लोटे के जल में कोई अन्तर तो नहीं है।' शिष्य प्रत्युत्तर में बोला,'नहीं।' स्वामी जी बोले,'सामने गंगाजी में नाव चल रही है। उस नाव को इस लोटे में के जल में भी चलाओ।' शिष्य बोला,'लोटा छोटा है, इसमें थोड़ा जल है, इतने में भला नाव कैसे चलेगी।' 
स्वामी जी शिष्यों से बोले,'वत्स! जीव एक छोटे दायरे में सीमाबद्ध होने के कारण लोटे के जल के समान अल्प और अशक्त है। यदि यह जल पुनः गंगा में लौटा दिया जाए तो उस पर नाव चलने लगेगी। इसी प्रकार जीव संकीर्णता के बन्धन काटकर महान्‌ बन जाए तो ईश्वर जैसी सर्वज्ञता और शक्ति उसे भी सहज प्राप्त हो सकती है।' 
जिज्ञासु शिष्य यह जान चुका था कि बिना संकीर्णता त्यागे महान्‌ नहीं बना जा सकता है। ईश्वर सदृश बनने के लिए जीव को अपनी अविद्या को तजकर कुछ विशेष करना होगा तभी वह ईश सदृश सर्वज्ञ बन सकेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्‍पणी देकर अपने विचारों को अभिव्‍यक्‍त करें।

पत्राचार पाठ्यक्रम

ज्योतिष का पत्राचार पाठ्यक्रम

भारतीय ज्योतिष के एक वर्षीय पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर ज्योतिष सीखिए। आवेदन-पत्र एवं विस्तृत विवरणिका के लिए रु.50/- का मनीऑर्डर अपने पूर्ण नाम व पते के साथ भेजकर मंगा सकते हैं। सम्पर्कः डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर' ज्योतिष निकेतन 1065/2, शास्त्री नगर, मेरठ-250 005
मोबाईल-09719103988, 01212765639, 01214050465 E-mail-jyotishniketan@gmail.com

पुराने अंक

ज्योतिष निकेतन सन्देश
(गूढ़ विद्याओं का गूढ़ार्थ बताने वाला हिन्दी मासिक)
स्टॉक में रहने तक मासिक पत्रिका के 15 वर्ष के पुराने अंक 3600 पृष्ठ, सजिल्द, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण और संग्रहणीय हैं। 15 पुस्तकें पत्र लिखकर मंगा सकते हैं। आप रू.3900/-( डॉकखर्च सहित ) का ड्राफ्‌ट या मनीऑर्डर डॉ.उमेश पुरी के नाम से बनवाकर ज्‍योतिष निकेतन, 1065, सेक्‍टर 2, शास्‍त्री नगर, मेरठ-250005 के पते पर भेजें अथवा उपर्युक्त राशि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट नं. 32227703588 डॉ. उमेश पुरी के नाम में जमा करा सकते हैं। पुस्तकें रजिस्टर्ड पार्सल से भेज दी जाएंगी। किसी अन्य जानकारी के लिए नीचे लिखे फोन नं. पर संपर्क करें।
ज्‍योतिष निकेतन, मेरठ
0121-2765639, 4050465 मोबाईल: 09719103988

विज्ञापन