1. संकीर्णता व्यक्ति को स्वार्थी व अज्ञानी बना देती है।-ज्ञानेश्वर
2. सकींर्णता कूप-मण्डूक सदृश है। -ज्ञानेश्वर
3. जहां संकीर्णता है वहां विस्तार नहीं है और ज्ञान का प्रकाश भी नहीं है। -ज्ञानेश्वर
4. ज्ञान के प्रकाश से संकीर्णता दूर होती है। -ज्ञानेश्वर
5. ज्ञानी सदा दूजों का हित साधते हैं। वे समदर्शी होते हैं।-ज्ञोनश्वर
6. जो संकीर्ण नहीं है उसी में आगे बढ़ने की क्षमता होती है, वह सामर्थ्यवान् बनकर अपना लक्ष्य भेदता है और दूजों का हित साधता है।-तुलसीदास
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