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बुधवार, जून 09, 2010

संकीर्णता



त्वामग्ने मनीषिणस्त्वां हिन्वन्ति चित्तिभिः।-ऋग्वेद 8.44.19
हे ईश विज्ञजन तुमको ज्ञान के द्वारा प्राप्त करते हैं
जीव ने स्वयं को ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित कर लिया है। इससे संकीर्णता दूर हो जाती है। समदृष्टि आ जाती है। इससे ईश सदृश सर्वज्ञता आ जाती है। क्योंकि ईश को विज्ञजन ज्ञान मार्ग या ज्ञान योग से प्राप्त करते हैं। ज्ञान के विस्तार से संकीर्णता दूर होती है और अविद्या के अभाव में कुछ विशेष हो जाता है। 
ज्ञानी रहे न संकीर्णता साथ। समता से आती सर्वज्ञता हाथ॥

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