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गुरुवार, जून 10, 2010

सूर्य की उत्पत्ति -पं. सत्यज्ञ



आप को बता दें कि सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से ऊँ शब्द प्रकट हुआ था वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। तदोपरान्त भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में ऊँ में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा।
एक अन्य पुराणकथा के अनुसार सृष्टि विस्तार हेतु ब्रह्मा जी ने दाएं अंगूठे से दक्ष तथा बाएं से उनकी पत्नी को उत्पन्न किया। दक्ष के तेरह कन्याएं हुईं। तेरहवीं कन्या का विवाह ब्रह्मा जी के पुत्र मारीचि से हुआ। मारीचि के कश्यप उत्पन्न हुए जोकि बाद में सप्त ऋषियों में एक हुए। कश्यप का विवाह अदिति से हुआ। कश्यप व अदिति से उत्पन्न सभी पुत्र देवता कहलाए। कश्यप की दूसरी पत्नी दिति से दानव उत्पन्न हुए जोकि उदंडी व क्रूर थे, वे सदैव देवताओं से लड़ते रहते थे। इससे माता अदिति बहुत दुःखी हुईं। एक बार करुणा संग सूर्यदेव से प्रार्थना की कश्यप से एक पुत्र दीजिए जो देवताओं की रक्षा करे। सूर्य कृपा से अदिति ने हिरण्यमय अंड को जन्म दिया जोकि तेज के कारण मार्तंड कहलाया।  अदिति का पुत्र होने के कारण इसका नाम आदित्य पड़ा। सूर्य ने माता की इच्छा पूर्ण करते हुए शत्रुओं का निर्दयता से दमन किया। इसलिए सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है नाकि दुष्ट, खल या पापी। सूर्य की जन्म भूमि कलिंग देश, गोत्रा कश्यप और जाति ब्राह्मण है। सूर्य गुड़ की बलि से, गुग्गल धूप से, रक्त चन्दन से, अर्क की समिधा से, कमल पुष्प से प्रसन्न होते हैं।
सूर्य का रथ सबसे विचित्र है उसके रथ में केवल एक पहिया है। सात अलग-अलग रंग के तेजस्वी घोड़े जुते हैं। सारथी लंगड़ा है, मार्ग निरालम्ब है, लगाम की जगह सर्पों की रस्सी है। श्रीमद्भागवत्‌ पुराण के अनुसार सूर्य के रथ का एक चक्र(पहिया) संवत्सर कहलता है। इसमें मास रूपी बारह आरे होते हैं, ऋतु रूप में छह नेमिषा है, तीन चौमासे रूप नाभि है। रस रथ की धुरी का एक सिरा मेरूपर्वत की चोटी पर है और दूसरा मानसरोवर पर्वत पर, इस रथ में अरुण नामक सारथी भगवान्‌ सूर्य की ओर रहता है। इसके साथ अंगूठे के पोरूए के बराबर आकार वाले बालखिल्यादि 60000 ऋषि स्वस्तिवाचन और स्तुति करते हुए चलते हैं।
भगवान्‌ सूर्य की दो पत्नियां हैं संज्ञा और निक्षुभा। संज्ञा के सुरेणु, राज्ञी, द्यौ, त्वाष्ट्री एवं प्रभा आदि अनेक नाम हैं तथा छाया का ही दूसरा नाम निक्षुभा है। संज्ञा विश्वकर्मा त्वष्टा की पुत्री है। भगवान्‌ सूर्य को संज्ञा से वैवस्वतमनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार द्वय और रैवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि और सावर्णिमनु ये दस सन्तान प्राप्त हुईं।
चक्र, शक्ति, पाश, अंकुश सूर्य देवता के प्रधान आयुध हैं। सूर्य के अधिदेवता शिव हैं और प्रत्यधि देवता अग्नि हैं। सूर्य देव की दो भुजाएं हैं, वे कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं, उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित रहते हैं। उनकी कान्ति कमल के भीतरी भाग की सी है और वे सात घोड़ों पर सात रस्सियों से जुड़े रथ पर आरुढ़ रहते हैं। सूर्य देवता का एक नाम सविता भी है। सूर्य सर्वभूत स्वरूप परमात्मा है। ये ही भगवान्‌ भास्कर, ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र बनकर जगत्‌ का सृजन, पालन और संहार करते हैं। इसलिए इन्हें त्रयीतनु कहा गया है। 
सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 6वर्ष की होती है। रत्न माणिक्य है। सूर्य की प्रिय वस्तुएं सवत्सा गाय, गुड़, तांबा, सोना एवं लाला वस्त्र आदि हैं। जप संख्या 7000 है। इसका वैदिक मन्त्र इस प्रकार वर्णित है-
ऊँ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्‌॥ 
पौराणिक मन्त्र इस प्रकार है-जपाकुसुमंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्‌। तमाऽरिं सर्वपापनं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्‌॥
इसका बीज मन्त्र इस प्रकार है-ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय  नमः। 
सामान्य मन्त्र है-ऊँ घृणि सूर्याय नमः।
नित्य सूर्य उपासना, सूर्य को अर्ध्य देने से सूर्यदेवता प्रसन्न होते हैं। सूर्य की धातु सोना व तांबा मुख्य है। 
हरिवंश का पुराण पढ़ें या सुनें। रविवार का व्रत करें।
   सूर्यदेव के नित्य दर्शन करें।

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