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रविवार, जून 27, 2010

गंगा दशहरा पापनाशक क्यों?



कहते हैं कि राजा सगर के 60000 पुत्र थे और उन्होंने समस्त असुरों पर विजय पायी थी। वे अपराजय हेतु अश्वमेध यज्ञ करना चाहते थे। उन्होंने पुत्रों के साथ घोड़ा भेज दिया। इन्द्रदेव उनकी शक्ति से डर गए और उन्होंने उस घोड़े को चुरा लिया व कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। सगर के पुत्रों ने घोड़ा वहां बंधा देखा तो आश्रम पर हमला कर दिया। तप में कपिल मुनि का ध्यान भंग हो गया। उनके क्रोध से समस्त साठ हजार पुत्र भस्म हो गए। तब राजा सगर के पौत्र उस घोड़े को लेने आए तो कपिल मुनि ने कहा कि उनके पुत्रों को जीवन मिल सकता है यदि स्वर्ग से गंगा धरती पर उतर आए। अंशुमन और दिलीप इस कार्य को करने में असफल रहे तो दिलीप के पुत्र भागीरथ ने कहा वह गंगा को धरती पर लाकर ही रहेगा। उन्होंने कई वर्षों तक तप किया और गंगा को प्रसन्न कर लिया और धरती पर आने को विवश कर लिया। लेकिन गंगा ने कहा-हे पुत्र! मेरा वेग इतना तीव्र है कि यदि मैं धरती पर सीधे उतर आई तो वे इसे सहन नहीं कर सकेंगी और मैं पाताल लोक में समा जाऊंगी। तब  राजा भगीरथ ने शिव की तपस्या की जब वे प्रसन्न हुए तो भोले भंडारी ने उन्हें अपनी जटाओं में उतारा और कुछ जल इस धरती पर उतारकर सगर पुत्रा की भस्म अस्थियों तक पहुंचाया तो उन्हें स्वर्ग में स्थान मिला। आज गंगा की समस्त धाराओं को भागीरथी, जाद्दवी, विष्णुपदी, मंदाकिनी, ऋषिगंगा, त्रिपथगा और अलकनंदा का नाम दिया गया है। ये सभी देवप्रयाग में गंगा से मिलती हैं।  आज भी वहां भागीरथ शिला है। कहते हैं इस पर बैठकर ही राजा भागीरथ ने गंगा की तपस्या की थी। तब से लेकर आज तक गंगा के पानी को अमृत कहा जाता है।
ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को बुधवार के दिन हस्त नक्षत्रा में गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थी। इस दिन किए गए स्नान से शुभ वैदिक अनुष्ठानों से मनुष्यों के दशविध पापों का विनाश हो जाता है। यह तिथि दश-हरा के नाम से लोकप्रिय है। भगवती गंगा पार्वती जी की बहन हैं और इस पवित्र दिन भारत भूमि को पवित्र किया था। राजा सगर के पुत्रों को आज के दिन सद्गति प्राप्त हुई थी। गंगा जल अपने मूल उद्गम से निकल कर मार्ग में नानाप्रकार की औषधियों से युक्त वृक्षों को छूता हुआ पत्थरों से व बालू से छनकर शुद्ध होता हुआ आता है जिसमें किया गया स्नान स्वास्थ्य के दृष्टि से भी गुणकारी है।
गंगा के इस अनमोल गुण को ध्यान में रखकर ही ऋषियों व मुनियों ने अमावस्या, पूर्णिमा व एकादशी आदि पर्वों अर्थात्‌ शुभदिनों में गंगा स्नान का आयोजन रखा है।
गंगा स्नान करने से शारीरिक व मानसिक दोनों दोषों के शान्त होने के साथ-साथ समस्त पापों से भी मुक्ति मिल जाती है।
समस्त वैदिक ज्ञान के रहस्यों को मुनियों ने गंगा तटों पर ही उजागर किया है। समस्त तप इन तटों पर हुए हैं। गंगा तट के किनारे ही समस्त तीर्थ हैं। इस पवित्र गंगा माता के तटों के पास समस्त ऋषियों की साधनाओं एवं तपों का प्रभाव एवं उनका पवित्र तेज व प्रकार आज भी फैला हुआ है। इसलिए गंगा तट के इन तीर्थ किनारों पर की गई साधना शीघ्र सिद्ध होती है।

मनुष्य से मन, वचन व कर्म से जाने-अनजाने बहुत से पाप हो जाते हैं। कहते हैं कि दशपापहरा यस्मात्‌ तस्मात्‌ स्मृता दशहरा अर्थात्‌ दस प्रकार के महापाप का जो हरण करे उसे ही दशहरा कहते हैं।
गंगा दशहरा के शुभ दिन देसी घी का आटे का दीपक जलाकर, एक बड़े पत्ते पर रखकर और साथ में दस लौंग, दस इलायची, दस फूल, दस मिश्री के दाने, दस सुपारी, दस केसर की पत्ती, दस तुलसी के पत्ते, दस चावल के दाने एवं दस पीली सरसों के बीज रखकर गंगा जी में निम्न मन्त्र बोलकर बहा देने चाहिएं-
नमो भगतत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै शिवायै। दशायै अमृतायै विश्वरुपिण्यै नन्दिन्यै जाद्दवीं ते नमो नमः॥
बाद में दशहरा गंगास्तोत्र का पाठ करके गंगा में पवित्र मन से स्नान करना चाहिए और गंगा माता से अपनी समस्त गलतियों की क्षमा मांगनी चाहिए। ऐसा करने पर मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वह संसार में सुख एवं ऐश्वर्य को भोगकर अन्त में मोक्ष को पा जाता है।

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