वास्तुकला का एक प्रणाली है जिसमें भवन को सुखकारी बनाने के लिए कुछ निर्देश हैं। बच्चे सहज न हों, काम से जी चुराते हों और सदैव व्याकुल व लापहरवाह रहते हों तो उनके कमरे का वास्तु कराएं। इससे उनमें अच्छे परिवर्तन दिखेंगे और वह सहज व जिम्मेदार होकर अपना भविष्य निर्माण करेंगे। बच्चा अपना सम्पूर्ण विकास कर सके और बाधाओं व अस्थिरता से मुक्त रहे इसके लिए निम्न सूत्रों का पालन करें-
1-अध्ययन कक्ष पूर्व, उत्तर, पूर्वोत्तर दिशा में होना चाहिए।
2-बच्चे के कमरे पर्याप्त कृत्रिम प्रकाश का प्रबन्ध करें। वैसे उसके कमरे में प्राकृतिक हवा एवं प्रकाश का आवागमन अवश्य होना चाहिए।
3-अध्ययन टेबल के लिए उपयुक्त स्थान है कमरे का पूर्वोत्तर भाग, यदि संभव नहीं है, तो यह जगह में
उत्तरी या कमरे का पूर्वी भाग। पढते समय बच्चे का चेहरा उत्तर, पूर्व या पूर्वोत्तर होना चाहिए। इससे बच्चे का पढाई में मन लगेगा, ध्यान केन्द्रित होगा और जो पढेंगे वो स्मरण रहेगा या समझ आएगा।
4-दीवारों और पर्दे के लिए हरे या नीले रंग का प्रयोग करें। हरा, नीला, आकाश नीले, हल्के भूरे और खाकी, ऑफ सफेद, पीला आदि। गाढें रंग एवं काले रंग के प्रयोग से बचना चाहिए।
5-बीम के नीचे सोने का पलंग न हो, इसी तरह पढनें की मेज भी न हो।
6-बिस्तर कमरे के प्रवेश द्वार के सामने न हो।
7-अलमारी कमरे के दक्षिण पश्चिम कोने में रखें।
8-बच्चे को प्रोत्साहित करने के लिए उसे अपने कमरे को स्वच्छ और व्यवस्थित रखने के लिए कहें। सप्ताह में एक बार तो उससे साफ अवश्य कराएं।
9-प्रात: नित्य कर्म के बाद नाश्ते से पूर्व, भोजन से पूर्व, सोने से पूर्व प्रार्थना का संस्कार डालें।
10- उसके कमरे में टीवी का प्रबन्ध न करें।
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